लखनऊ

विदेशों में संक्रमित होते ही लोग चले जाते हैं आइसोलेशन बबल में जानिए यह क्या है ये

आइसोलेशन बबल वह जगह है जहां कोई अकेला रहता है। इसके अंदर रहने वाले व्यक्ति का बाहरी दुनिया से संपर्क कट जाता है। आइसोलेशन बबल के लिए ऐसी जगह चुनी जाती है, जहां से निश्चित दायरे के बाहर किसी और के साथ संपर्क न हो सके। इसमें रहने वाला व्यक्ति भी इस जगह के अलावा कहीं और नहीं जा सकता। किसी विशेष प

लखनऊJan 11, 2022 / 03:43 pm

Mahendra Pratap

लखनऊ. खतरनाक कोरोना वायरस एक बार फिर यूपी में अपने पैर तेजी से पसार रहा है। नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के चलते कोविड का संक्रमण पहले से ज्यादा घातक नजर आ रहा है। इस वायरस से बचने के लिए एक ही उपाय है संक्रमित होते ही रोगी खुद को आइसोलेट कर लें। आइसोलेशन का एक और रूप पूरी दुनिया में तेजी से प्रचलित हो रहा है वह आइसोलेशन बबल। जिसमें व्यक्ति आइसोलेशन बबल मे अकेला रहता है। इसके अंदर रहने वाले व्यक्ति का बाहरी दुनिया से संपर्क कट जाता है।

तेजी से बढ़ रहे हैं मामले


यूपी समेत पूरी दुनिया में आने वाले दिनों में कोविड के मामले और ज्यादा बढ़ सकते हैं। ऐसे में सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। कोरोना संक्रमण से बचाव का सबसे बेहतर उपाय होम आइसोलेशन है। जिन मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आ रही है, उन्हें होम आइसोलेशन में रहने की सलाह दी जा रही है। वहीं, कुछ लोगों में कोविड के लक्षण तो नहीं हैं लेकिन उनकी भी रिपोर्ट पॉजिटिव आ रही है। उन्हें भी होम आइसोलेशन में रहने की सलाह दी जा रही है।
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क्या है आइसोलेशन बबल


आइसोलेशन बबल वह जगह है जहां कोई अकेला रहता है। इसके अंदर रहने वाले व्यक्ति का बाहरी दुनिया से संपर्क कट जाता है। आइसोलेशन बबल के लिए ऐसी जगह चुनी जाती है, जहां से निश्चित दायरे के बाहर किसी और के साथ संपर्क न हो सके। इसमें रहने वाला व्यक्ति भी इस जगह के अलावा कहीं और नहीं जा सकता। किसी विशेष परिस्थिति में उन्हें बाहर जाना होता भी है, तो भी उन्हें लौटने के बाद सात दिन क्वारंटीन रहना होता है। दोबारा कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव आने पर भी वह बबल से जुड़ते हैं। इसके लिए ट्रैकिंग डिवाइस से निगरानी की जाती है। इसमें पता लगता है कि कौन इस बबल के अंदर है और कौन बाहर जा रहा है।
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सोशल बबल भी चलन में


न्यूजीलैंड के शोधकर्ताओं ने माना कि परिवार के सदस्य एक-दूसरे से मिलते हैं तो संक्रमण के मामले कम हो सकते हैं। न्यूजीलैंड के इस शोध को ‘सोशल बबल’ मॉडल नाम दिया गया है। शोध के अनुसार परिवार के सदस्य, दोस्त या कलीग जो अक्सर मिलते रहते हैं उनके समूह को सोशल बबल कहते हैं। लेकिन मिलने के दौरान दूरी बरकरार रखना जरूरी है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च कहती है कि अगर लोग छोटे-छोटे ग्रुप में एक-दूसरे से मिलें तो वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, सोशल डिस्टेंसिंग में लोगों को भीड़ या समूह में रहने की अनुमति नहीं होती ताकि एक-दूसरे के सम्पर्क में न आएं। जबकि, सोशल बबल में घर में ही फैमिली मेम्बर्स, दोस्त या कलीग के मिलने-जुलने की इजाजत रहती है लेकिन बात करते समय उनके बीच पर्याप्त दूरी जरूरी होती है। जर्मनी और न्यूजीलैंड में इसे लागू किया जा चुका है और ब्रिटेन में भी यह अपनाया जा रहा है।
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संक्रमित मरीजों को होते हैं यह लक्षण


-सबसे पहले गले में खराश, रूखापन या जलन होना।
– इसके बाद नाक बंद होना। सूखी खांसी आना जैसी समस्या आती है। यानी कि शुरुआती तौर पर अपर रेस्पिरेट्री ट्रैक से जुड़ी समस्याएं होती है।
– इसके बाद शरीर में दर्द होने जैसी समस्याएं होती हैं।
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