उनहोंने कहा कि दुःख का बीज क्या है, मोह, ममता ही दुख का बीज है। श्री राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास जी कहते है ‘मोह सकल ब्याधिनि कर मूला’। अर्जुन भी रणक्षेत्र में मोह से ग्रसित होकर युद्ध से मना करता है। मोह को पहचानने के चार लक्षण हैं। पहला स्वधर्म परित्याग, अर्जुन क्षत्रिय है और युद्ध के बीच पलायन की बात करता है। दूसरा परधर्म अनुष्ठान, अर्जुन के धर्म में भिक्षा की मान्यता नहीं है। वह कहता है में भिक्षा मांग कर जीवन जी लूंगा पर युद्ध नहीं करुंगा।
तीसरा फल की आकांक्षा से कर्म करना, कर्म सामने हो तो उसे करने के पहले ही कर्मफल पर विचार से कर्म भी ढंग से नहीं हो पाता और चैथा कर्ता भाव लाकर कर्म करना, कर्म की गति बढ़ी टेढ़ी है। अगर हम समझते हैं कि हम कर्ता हैं तो यह भूल है, करने वाला तो कोई और है। संयोजक आलोक दीक्षित ने बताया कि कथा 22 अगस्त तक शाम 6 बजे से 8 बजे तक होगी। कथा में आलोक नित्य, सतीश चन्द्र वर्मा, लक्ष्मी नारायण मिश्रा, कौशलेन्द्र मिश्रा, संजय वर्मा, मनोज अग्रवाल, शिव अग्रवाल मौजूद रहे।