वाराणसी डाकघर घोटाले की जांच दोबारा शुरू, 200 खाताधारकों के खाते से करोड़ों के गबन का मामला, एंटी करप्शन ब्रांच ने लखनऊ में दर्ज किया मुकदमा
सीबीआई ने वाराणसी के 2019 के चर्चित मुख्य डाकघर घोटाले (Varanasi Dak Ghar Scam) की जांच एक बार फिर शुरू कर दी है। एंटी करप्शन ब्रांच ने लखनऊ में मुकदमा दर्ज किया है। मामले में पांच कर्मचारी अभियुक्त हैं।
Varanasi Dak Ghar Scam Ghotala Investigation Started by CBI
योगी सरकार के दोबारा सत्ता में वापसी करने के बाद ताबड़तोड़ कार्रवाइयों की सिलसिला एक बार फिर शुरू हो चुका है। सीबीआई ने वाराणसी के 2019 के चर्चित मुख्य डाकघर घोटाले (Varanasi Dak Ghar Scam) की जांच एक बार फिर शुरू कर दी है। एंटी करप्शन ब्रांच ने लखनऊ में मुकदमा दर्ज किया है। मामले में पांच कर्मचारी अभियुक्त हैं। दरअसल, 5 सितंबर, 2019 को वाराणसी कैंट थाने में एक मुकदमा दर्ज किया गया था। प्रधान डाकघर के सहायक अधीक्षक अजय कुमार ने यह मुकदमा दर्ज कराया था। इसके आधार पर अपर मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ने 23 सितंबर, 2021 को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मुकदमे की विवेचना सीबीआई से कराए जाने की सिफारिश की थी। मामले में वाराणसी सब डिवीजन के प्रधान डाकघर (पश्चिमी) में कार्यरत रहे डाक सहायक सुनील कुमार यादव व विनय कुमार यादव, बचत अभिकर्ता प्रदीप कुमार सिंह, सहायक डाक पाल राजेश कुमार व रामशंकर लाल अभियुक्त हैं। अभियुक्तों पर प्रधान डाकघर के विभिन्न जमाकर्ताओं के अलग-अलग खातों से धोखाधड़ी के माध्यम से धन निकाले जाने की बात सामने आई थी।
5 करोड़ से अधिक निकाले गए थे पैसे बता दें कि प्रधान डाकघर से लगभग छह करोड़ रुपये के गबन का मामला सामने आने के बाद डाक विभाग के अधिकारियों ने इसकी जांच शुरू कर दी थी। शुरुआती जांच में डाक विभाग ने पांच लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। पुलिस को जांच के दौरान कुल 295 शिकायती पत्र मिले, जिसमें लगभग छह करोड़ रुपये का धन निकाले जाने की बात सामने आई थी। कैंट पुलिस ने मामले में आरोपी विनय यादव को मिर्जामुराद से पकड़ा था। गबन का मामला सामने आने के बाद से ही विनय फरार चल रहा था। उसकी गिरफ्तारी नवंबर, 2020 में हुई थी।
200 खाताधारकों से खाते से गबन का मामला आया था सामने डाकघर घोटाले मामले में लगभग 200 खाताधारकों के खाते से चार करोड़ रुपये गबन का मामला सामने आया था। जब जांच शुरू हुई तो गबन का आंकड़ा बढ़कर पांच करोड़ से अधिक जा पहुंचा। पहले ईओडब्ल्यू और फिर सीबीआई ने मामले की जांच शुरू कर दी। डाकघर गबन मामले की शुरुआती जांच में यह खुलासा हुआ कि एफडी और किसान विकास पत्र पर डाक सहायक और कुछ अन्य डाककर्मी पासबुक पर सिर्फ फर्जी मुहर लगाकर खाताधारकों के रुपयों से अपनी जेब भरते गए।
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