पति की डांट से परेशान होकर घर से ही उठाई आवाज शकुंतला का जन्म कानपुर के मकनपुर में हुआ था। बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ गया था। फिर भाई व बहन की भी मौत हो गई थी। इन परिस्थितियों में वह अकेली पड़ गई थी। मां ने बड़ी मुश्किल से उनका विवाह मल्हानपुर्वा निवासी ग्राम पंचायत सचिव जगदीश श्रीवास्तव से करा दिया। शादी के बाद घर का काम और पति की डांट से वह परेशान थी। इसके बाद उसने महिलाओं के उत्पीडऩ के खिलाफ आवाज उठाने को ठानी। इसी बीच गांव की 58 गरीब महिलाओं के पट्टे पर दबंगों ने कब्जा कर लिया था।
50 बाल विवाह और कई जगह भ्रूण हत्या रुकवाईं अक्टूबर 1998 में शकुंतला ने महिलाओं के साथ जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। उनके ग्राम पंचायत अधिकारी पति उन्हें धरना प्रदर्शन से हटने की धमकी देने लगे और कहा कि नहीं हटी तो तलाक दे दूंगा। वह नहीं मानी और अंत में तत्कालीन जिलाधिकारी ने उनके पति को निलंबित करते हुए गरीब महिलाओं को पट्टे पर काबिज कराया। इसके बाद उनके साथ वह सभी महिलाएं जुड़ गईं। उन्होंने गांव व आस-पास 50 बाल विवाह और कई जगह भ्रूण हत्या रुकवाईं। 18 दिसंबर 2017 में उन्हें मुख्यमंत्री ने रानी लक्ष्मी बाई पुरुष्कार भी दिया।
महिलाएं घूंघट से निकाला बाहर शकुंतला ने महिलाओं को परदा प्रथा पर भी प्रहार किया। वह बताती हैं कि ससुराल में पूरे दिन घूंघट रखने से वह कोई काम नहीं कर पातीं। महिलाएं घूंघट के बाहर निकली और उनसे जुड़ती चली गई। शकुंतला की उम्र 50 हो गई है। मगर उन्होंने हार नहीं मानी है। वह महिलाओं के अधिकारों के लिए जिला प्रशासन से लेकर कमिश्नर तक कार्यालय में धरने पर बैठ जाती हैं। वह बताती हैं कि आज उनके इस साहस भरे काम को देख तमाम महिलाएं उनसे जुड़ी है। शकुंतला की ईमारदारी अौ सहास को देख आज सभी सरकार उनकी तारीफ करती हैं।