कल्पना कीजिए कि आप किसी वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट से एक लाख रुपए के अंदर कोई कोर्स करते हैं और आपको 60 हजार रुपए प्रति माह की सैलरी मिलने लगती है। अब आप बताइए कि आप क्या करना चाहेंगे? क्या आप कम वैल्यू वाला एमबीए या इंजीनियरिंग कोर्स करना चाहेंगे या फिर डिमांड में रहने वाला इलेक्ट्रीशियन, लैब टेक्नीशियन या जेमोलॉजिस्ट बनना चाहेंगे? टीमलीज के एक सर्वे से यह साबित हुआ है कि देश के जॉब मार्केट में व्हाइट कॉलर जॉब्स सिकुड़ रही हैं।
वोकेशनल जॉब्स में बढ़ी है सैलेरी
यह सर्वे कई महत्वपूर्ण बातें बताता है। उदाहरण के लिए जेमोलॉजिस्ट पांच साल का अनुभव होने पर 60 हजार रुपए प्रति माह तक कमा सकता है। नॉन टॉप टियर कॉलेज से इंजीनियर या एमबीए करने वाले ग्रेजुएट भी ऐसा नहीं कर पाते हैं। वे इसी तरह का अनुभव होने पर भी 40 हजार रुपए प्रति माह ही कमा पाते हैं। एक लैब टेक्नीशियन, इलेक्ट्रीशियन, विजुअल मर्चेंडाइजर या फैशन डिजाइनर प्रति माह 60 हजार रुपए तक कमा सकता है। सर्वे वोकेशनल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट से निकले हुए स्किल्ड वर्कर्स की सैलेरी की तुलना टॉप 50 से बाहर आने वाले इंजीनियरिंग और एमबीए इंस्टीट्यूट से निकले स्टूडेंट्स की सैलेरी से करता है। वोकेशनल जॉब्स में सैलेरी समय के साथ ही तेजी से बढ़ रही है। दूसरी ओर इंजीनियरिंग, एमबीए के बाद मिलने वाली सैलरी में कमी दर्ज की गई है।
महंगी डिग्री की बजाय स्किल खास
वोकेशनल एम्प्लॉइज के लिए सैलेरी का स्तर 8 वर्ष के अनुभव के बाद और भी ज्यादा हो गया। व्हाइट कॉलर एम्प्लॉयमेंट में निचले दर्जे के संस्थानों से पढ़ाई करने वालों की तुलना में स्किल्ड वोकेशनल जॉब करने वालों को पिछले 15 सालों में बहुत अच्छी सैलरी मिलने लगी है। अब विजुअल मर्चेंडाइजर, ऑटोमोबाइल सर्विस टेक्नीशियन, नेटवर्क टेक्नीशियन और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में सर्वेयर को ज्यादा पैसा मिल रहा है।
ट्रेंड लोगों की है कमी
आपको मिलने वाला पैसा डिमांड और सप्लाई की झलक दिखाता है। देश में इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स और एमबीए की सप्लाई जरूरत से ज्यादा हो रही है। वहीं वोकेशनल्स कोर्स में कुशल कारीगरों की कमी है। अगले 5 सालों में वोकेशनल जॉब मार्केट में लगभग छह करोड़ ट्रेंड लोगों की कमी होगी। जैम्स एंड ज्वैलरी सेक्टर की कंपनी को जेमोलॉजिस्ट चाहिए। कंपनी स्पेशलिस्ट ट्रेंड जेमोलॉजिस्ट को अच्छा पैकेज देती है।
स्किल्स बेमानी भी हो सकती हैं
हालांकि वोकेशनल स्किल्स का एक नकारात्मक पहलू यह है कि वे एक खास सेक्टर में ही जॉब उपलब्ध करवा पाती हैं। अगर भविष्य में ट्रेंड में कोई बदलाव आता है तो आपकी स्किल अनुपयोगी हो सकती हैं। टीमलीज के एक अनुमान के मुताबिक 50 से कम रैंक वाले इंस्टीट्यूट से निकलने वाले 80 प्रतिशत इंजीनियर्स को रोजगार नहीं मिल रहा है। वहीं 99 प्रतिशत एमबीए भी देश में बेरोजगार घूम रहे हैं।
वोकेशनल स्किल्स का बढ़ा है महत्व
वोकेशनल स्किल्स की डिमांड ज्यादा है। एमबीए की तुलना में विजुअल मर्चेंडाइजर को अपैरल इंडस्ट्री में ज्यादा पैसा मिलता है। विजुअल मर्चेंडाइजर को इलेक्ट्रिकल इंजीनियर से अच्छा पैसा मिलता है। स्किल्ड इलेक्ट्रीशियन की सैलेरी 5 वर्ष से ज्यादा अनुभव हो जाने पर 27250 रुपए प्रति माह से बढक़र वर्ष 2018 में 39500 रुपए प्रति माह हो गई। वहीं नेटवर्क टेक्नीशियन जो 2016 में 38 हजार रुपए कमा रहा था, वह 2018 में 51600 रुपए कमा रहा था। वहीं निचले दर्जे के संस्थान से इंजीनियरिंग करने के बाद जहां 2016 में एक इंजीनियर 30200 रुपए कमा रहा था, वहीं 2018 में उसने 40500 रुपए प्रतिमाह कमाए। इसी तरह के इंस्टीट्यूट से एमबीए करने के बाद 2016 में 32500 रुपए प्रतिमाह मिले और 2018 में 42000 रुपए प्रतिमाह की सैलेरी मिली।