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जब बिन्दी, काजल पर जीएसटी नहीं तो सैनेटरी नैपकिन पर क्यों : दिल्ली हाई कोर्ट

कोर्ट ने केन्द्र से कहा कि, आप बिन्दी, काजल और सिंदूर जैसे सामग्री को जीएसटी से बाहर रखते है, लेकिन सैनेटरी नैपकिन पर टैक्स लगाते है

नई दिल्लीNov 16, 2017 / 12:41 pm

manish ranjan

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नई दिल्ली। बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने जीएसटी रेट में कटौती के बाद केन्द्र सरकार से एक महत्वपूर्ण सवाल पूछ लिया। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि यदि बिन्दी, सिंदूर और काजल जैसी वस्तुओ पर जीएसटी नहीं लग रहा तो, औरतो के लिए प्रयोग किया जाने वाला सैनेटरी नैपकिन को जीएसटी से क्यों नहीं बाहर रखा जा सकता। दिल्ली हाईकोर्ट के एक बेंच ने कहा कि, सैनेटरी नैपकिन औरतों कि लिए एक जरूरत है और इसे जीएसटी के दायरे में रखने का कोई व्याख्या नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने केन्द्र से कहा कि, आप बिन्दी, काजल और सिंदूर जैसे सामग्री को जीएसटी से बाहर रखते है, लेकिन आप सैनेटरी नैपकिन पर टैक्स लगाते है। ये उनके लिए एक जरूरत है। क्या आपके पास इसकी कोई व्याख्या है।


पीएचडी स्कॉलर ने दायर किया था याचिका

कोर्ट ने इस बात पर भी अपनी नाराजगी जताई की, 31 सदस्यों की जीएसटी काउंसिल में एक भी औरत क्यो नहीं है। कार्ट ने ये भी सरकार से कड़े लहजे में ये भी पूछा कि, क्या इसको लेकर आपने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से इस बाबत कोई बात किया या फिर आपने केवल इंपोर्ट और एक्सपोर्ट ड्यूटी को देखकर सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी लगाने का फैसला किया। कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 14 दिसंबर को करेगा। हाई कोर्ट ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की एक पीएचडी स्कॉलर जमिरा इसरार खान द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा। इस याचिका में सैनेटरी नैपकिन पर लगाया जाने वाला 12 फीसदी जीएसटी को अवैध एवं असंवैधानिक बताया था।

 

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हो सकता घरेलू निर्मित सैनेटरी नैपकिन को नुकसान

सरकार के एक आला अधिकारी ने बताया कि, यदि हम सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी की छूट देते हैं तो इसकी कीमत में बढ़ातरी हो जाएगा। सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी हटा लेेने से घरेलू मैन्यूफैक्चरर को कोई भी इनपुट के्रडिट नहीं मिल सकेगा। सरकार द्वारा फाइल किए काउंटर एफिडेविट में कहा गया है कि, इससे घरेलू रूप से निर्मित सैनेटरी नैपकिन को आयात के रूप में भारी नुकसान होगा। जो की जीरो रेटेड होगा। इस पर कोर्ट ने कहा कि, ये एक तकनीक एवं सांख्यिकी कारण है और सरकार नंबर गेम में उलझा रही है।


सरकार ने अपने काउंटर ऐफिडेविट में कहा कि, सैनेटरी नैपकिन बनाने के लिए प्रयोग होने वाले कच्चे सामानों पर 12 से 18 फीसदी का जीएसटी लगता है यहां तक सैनेटरी नैपकिन पर 12 फीसदी जीएसटी लगाना भी जीएसटी स्ट्रक्चर में एक उलटाव है। ये भी कहा गया कि, टैक्स दर न तो मनमाना है और न ही असंवैधानिक है।


निचले तबके के महिलाओं के लिए हटाया जाए टैक्स

कोर्ट ने पहले भी वित्त मंत्रालय से वस्तु एवं सेवा कर परिषद से दायर याचिका पर जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता ने ये दावा किया है कि ये याचिका महिलाओं के हित के लिए दायर किया गया है, खासकर उन महिलाओं के लिए तो नीचले आर्थिक तबके से आती है। एडवोकेट अमित जॉर्ज द्वारा दायर किया गया इस याचिका में कहा गया है कि, ये एक जमीनी स्तर का मसला है और सैनेटरी नैपकिन से 12 फीसदी के जीएसटी को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए।


याचिका में कहा गया है कि, सरकार ने काजल, कुमकुम, बिन्दी, सिंदुर, आल्ता, प्लास्टिक और चुडिय़ां और पूजा समग्री जैसी वस्तुओं से पर जीएसटी नहीं लगाया है। इसके साथ ही सभी तरह के कंट्रासेप्टिव जैस कंडोम पर भी जीएसटी नहीं लगाया गया है। लेकिन महिलाओं की सेहत के लिए जरूरी सैनेटरी नैपकिन पर अभी जीएसटी लगाया जा रहा है।

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