बाबूलाल मंदिर में प्रहलाद का पूजन करते रहे। इसी दौरान वे मन में लगातार प्रहलाद का नाम जप रहे थे। सुबह साढ़े चार बजे वे मंदिर से निकले आैर होलिका का पूजन किया। फिर ग्रामीणों ने होलिका में आग लगा दी। आग के कारण ऊंची-ऊंची लपटें उठने लगी। बाबूलाल की बहन उन्हें प्रहलाद कुंड तक ले गर्इं। जहां पर डुबकी लगाने के बाद वे हाेलिका में कूद गए। होलिका से निकलने के बाद उन्होंने हाेलिका की परिक्रमा की आैर फिर घर चले गए। बाबूलाल का कहना है कि उन्हें कोर्इ नुकसान नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि जब वे मंदिर में भगवान भक्त प्रहलाद के जप में लीन थे तभी प्रहलाद उन पर आ गए आैर वे कुंड में डुबकी लगाकर आग में कूद गए।
पौराणिक मान्यताओं के आधार पर फालैन को विष्णुभक्त प्रहलाद का गांव माना जाता है। ऐसी धारणा है कि प्रहलाद का गांव होने की वजह से ही फालैन के ब्राह्मण समाज का पण्डा उन्हीं के समान होलिका की अग्नि में से निकलने का चमत्कार कर पाता हैं और उसका बाल भी बांका नहीं होता।