scriptInternational Widows Day 2021 : तिरस्कार की जिंदगी छोड़ विधवा माताओं ने उठाया लोगों को कोरोना से बचाने का बीड़ा | International Widows Day 2021 widow women saves people from corona | Patrika News
मथुरा

International Widows Day 2021 : तिरस्कार की जिंदगी छोड़ विधवा माताओं ने उठाया लोगों को कोरोना से बचाने का बीड़ा

International Widows Day 2021 : कोरोना काल में विधवाओं ने पेश की मिसाल, वृंदावन में रहने वाली विधवा माताएं कोरोना से लोगों को बचाने के लिए बना रहीं मास्क।

मथुराJun 23, 2021 / 12:31 pm

lokesh verma

photo_2021-06-23_11-25-47.jpg
पत्रिका न्यूज नेटवर्क

मथुरा. International Widows Day 2021 : अपना पूरा जीवन पति और परिवार की सेवा में लगा देने वाली महिलाओं को पति की मौत के बाद आज भी समाज समाज का तिरस्कार झेलना पड़ता है। पूर्व में जहां पति की मौत के बाद पत्नियों उसी चिता में सती कर दिया जाता था, वहीं आज उन्हें दर-दर की ठाेकरें खाने के लिए छोड़ दिया जाता है। अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस पर टीम ‘पत्रिका’ ने वृंदावन स्थित आश्रम में जीवन के अंतिम दिन काट रहीं ऐसी विधवा महिलाओं (Widow Women) का हाल जाना। जहां जाकर पता चला कि पति की मौत के बाद परिवार वालों की बेरुखी और समाज से तिरस्कृत ये महिलाएं उसी समाज और लोगों का जीवन बचाने का प्रयास कर रही हैं, जिन्होंने इन्हें दुत्कार दिया था। ये विधवा माताएं कोरोना (Coronavirus) से लोगों को बचाने के लिए आश्रम में ही मास्क बनाकर लोगों को बांटकर मिसाल पेश कर रही हैं।
यह भी पढ़ें- Raj Babbar Birthday : स्मिता पाटिल की मौत ने तोड़ दिया था राज बब्बर को, जानें कैसे तय किया बॉलीवुड से राजनीति तक का सफर

दरसअल, वृंदावन में सुलभ इंटरनेशल संस्था की ओर से संचालित मां शारदा महिला आश्रय सदन में रह रहीं विधवा माताओं ने अपनी कमजोर नजर पर चश्मा चढ़ाते हुए कोरोना से लोगों को बचाने के लिए मास्क सिलकर बांटने की मुहिम छेड़ रखी है। अब तक ये हजारों लोगों को मास्क सिलकर बांट चुकी हैं। हालांकि सामान्य दिनों में ये महिलाएं आश्रम में ठाकुरजी के लिए पटुका आदि की सिलाई करती थीं, लेकिन लॉकडाउन में जब बाजार बंद थे और माल की डिमांड भी नहीं थी तो ऐसे में इन महिलाओं ने ठाकुरजी के लिए पटुका सिलने के बजाय लोगों को कोरोना से बचाने के लिए मास्क सिलकर बांटे। इस नेक काम के लिए जहां संस्था ने इन महिलाओं को रॉ मेटेरियल उपलब्ध कराया तो वहीं इन महिलाओं ने भी प्रेम के धागे से लोगों के लिए मास्क सिले।
पहले मांगनी पड़ती थी भीख, लेकिन अब समय बदल गया

बता दें कि वृंदावन में परिक्रमा मार्ग स्थित तुलसी वन के निकट मां शारदा महिला आश्रय सदन है। जहां वर्तमान में करीब 35 विधवा माताएं रह रही हैं। इनमें ज्यादातर पश्चिम बंगाल से हैं। यहां रह रहीं 76 वर्षीय दीपाली नाथ जो दमदम पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि करीब 17 साल पहले पति की मौत के बाद वे वृंदावन आ गई थीं। उनके परिवार में 5 बेटी और 1 बेटा है, लेकिन वे यहां अकेली रहती हैं। वृंदावन निवास के शुरुआती दिनों को याद कर दीपाली बतातीं हैं कि पहले जीवन यापन करने के लिए भजनाश्रमों में भजन कीर्तन करना पड़ता तब कहीं जाकर 2-4 रुपए मिलते थे। गुजर बसर में लिए भिक्षावृत्ति भी माताओं को करनी पड़ती थी, लेकिन समय के साथ अब स्थिति बहुत बदली है।
सिलाई सीख बनीं आत्मनिर्भर

वहीं एक विधवा महिला छवि शर्मा, जो पति की मौत के 2 साल बाद वृंदावन आ गईं। 60 वर्षीय छवि का कहना है कि उनका एक ही बेटा है, लेकिन वे यहां अकेली रहती हैं। करीब 68 वर्षीय ऊषा दासी ने बताया कि वे छत्तीसगढ़ की है और पति की मौत होने पर करीब 20 साल पहले वृंदावन आ गईं। अपनों से दूर रह रहीं इन विधवा माताओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए इन्हें सिलाई का काम संस्था द्वारा सिखाया गया है। छवि ने बताया कि अब वे ठाकुरजी के लिए पटुका सिलाई कर 80-100 रुपए प्रतिदिन कमा लेती हैं। उनके साथ यहां अन्य महिलाएं भी सिलाई सीख आत्मनिर्भर होने के गुर सीख चुकी हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो