समय मिलता है तो वृंदावन आती हैं और कुछ दिन अपने मकान में रह रहीं करीब एक दर्जन महिलाओं के साथ पूजा पाठ, बातचीत करती हैं और खाती पीती हैं ताकि उन्हें एक परिवार जैसे माहौल का अहसास हो। मकान में एक सेवक भी है जो उनकी अनुपस्थिति में महिलाओं की सभी जरूरतों का प्रबंध करता है।
सुजाता का मानना है कि गाँधी जी के अनुसार सम्पन्न लोगों को अपनी आमदनी का 80 फीसदी दूसरों के लिए सामाजिक कार्यों पर खर्च करना चाहिए। मैं तो 30 फीसदी ही कर पाती हूं।
सुजाता के नाना और पिता सब लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था, सो सुजाता को विरासत में देशप्रेम भी मिला और सम्पन्नता भी। सुजाता भागलपुर में प्रोफेसर रहीं, वकालत भी की लेकिन धनोपार्जन के इन ठिकानों से अलग हो देश और समाज का काम करने का बीड़ा उठाया। सुजाता भागलपुर के पास के गांव में एक चैरिटेबिल शिक्षा केंद्र का संचालन करती हैं। महिलाओं की शिक्षा को महत्वपूर्ण मानती हैं। सुजाता की यह सेवा एक दशक से ज्यादा पुरानी है। वृंदावन में सैंकड़ों समाजसेवी है, सैंकड़ों खोजी पत्रकार हैं लेकिन वृंदावन में सच्चे समाजसेवियों की पहचान कोई नहीं कर पाया। दरअसल, अच्छाइयां ज्यादा दिन दबी ढ़की रहती हैं, सच्चा समाजसेवी इसके प्रचार प्रसार से परहेज भी रखता है। बुराइयां तो हमें आँख मीचे भी दिखाई दे जाती हैं। सुजाता को सच्चे समाजसेवी की श्रेणी में रखा जा सकता है।