मऊ. डॉक्टरों के उस समय होश उड़ गए जब कंधे पर अपनी विकलांग बेटी को लिये एक गरीब महिला ने ये बताया ‘साहब मैं कंधे पर लेकर 15 किलोमीटर पैदल आयी हूंए मेरी बेटी का इलाज कर दीजिये।’ महिला को थकान कम, इस बात की फिक्र ज्यादा थी कि उसकी बेटी बच जाए। उसकी बात सुनकर डॉक्टर और कर्मचारी सिहर उठे। अस्पताल में खड़ी एंबुलेंस और स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे पर सवाल खड़ी कर देने वाली ये तस्वीर मऊ जिला अस्पताल की है। सिस्टम के सितम का ये वाकया वाकई किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देने वाला था।
इसे भी पढ़ें जानिये कौन हैं फागू चौहान जिन्हें बनाया गया है बिहार का राज्यपाल दरअसल गाजीपुर जिले का करमुद्दीनपुर गांव मऊ बॉर्डर से सटा हुआ है। इसीलिये भीम राजभर की दिव्यांग बेटी पिंकी राजभर की अचनक तबीयत बेहद खराब हो गयी तो पहले माता-पिता अस्पताल जाने के लिये किसी एंबुलेसं या कोई और साधन जुगाड़ने में जुट गए। पर एंबुलेंस मिली नहीं और साधन का जुगाड़ करने लायक उनकी हैसियत नहीं थी। बेटी का तड़पना देखकर मां सुदामी देवी को नहीं रहा गया तो उसने उसे कंधे पर उठा लिया और नंगे मऊ जिला अस्पताल नजदीक था सो चल पड़ी। पीछे-पीछे भीम राजभर भी चला। अपने सामर्थ्य के मुताबिक कहीं-कहीं पत्नी थक जाती तो वह उसे सहारा दे देता। रास्ते भर शायद जिसने भी देखा उसने यह जानने की कोशिश नहीं किया कि नंगे पैर बेटी को कंधे पर लिये एक औरत कहां चली जा रही है।
इसे भी पढ़ेंजेल में ऐसी ऐशो आराम की ज़िन्दगी जीते हैं अपराधी, मऊ जेल का विडियो वायरल होने के बाद हुआ खुलासा daughter on Shoulder” src=”https://new-img.patrika.com/upload/2019/07/29/photo_03_4904315-m.jpg”>बीमार पिंकी IMAGE CREDIT: किसी तरह 15 किलोमीटर का कठिन सफर तय करते सुदामी देवी बेटी पिंकी को कंधे पर लेकर मऊ जिला अस्पताल पहुंची तो वहां डॉक्टरों ने हाथों-हाथ लिया और बेटी पिंकी का इलाज शुरू हुआ। जिलास्पातल के चिकित्सक रितेश तिवारी ने बताया कि एक सुदामी देवी ने अपनी दिव्याग बेटी को इलाज के लिए भर्ती कराया है, जिसका इलाज शुरू हो चुका है। उसे शूगर सहित अन्य बीमारियां है, जिसकी जांच कराने के बाद उसका बेहतर इलाज शुरू किया गया है।
इसे भी पढ़ेंपिटायी से नाराज पत्नी ने पति को डंडे से पीटकर मार डालाजिला अस्पताल में इलाज करते डॉक्टर IMAGE CREDIT: कुल मिलाकर ऐसी घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि हमारा सिस्टम दूर दराज के दबे-कुचले और गरीबों को बेसिक जरूरतें मुहैया कराने में भी किस कदर नाकाम है। ऐसे दौर में जब अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज बनाया जा रहा है, एक फोन कॉल पर एंबुलेंस कहीं भी पहुंच जाने का दावा किया जा रहा है, नंगे पैर अपनी विकलांग बेटी को कंधे पर लिये इलाज के लिये जाती मजबूर मां की तस्वीर न सिर्फ हुक्मरानों के दावे पर सवाल खड़ा करती है बल्कि यह बताती है कि अब भी गरीबों को कैसे जीने के लिये जद्दोजेहद करनी पड़ती है।
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