श्रद्धालु यहीं पर जूते-चप्पल (जोड़ा) उतारते हैं। गली में वाहन खड़े होने से आवागमन बाधित न हो, इसके लिए दुपहिया वाहन भी अब्दुल अपने घर के अहाते में खड़ा करवा लेते हैं। जब तक संगतों का आना-जाना लगा रहता है अब्दुल रऊफ उसी जगह बैठकर जोड़ों की रखवाली करते रहे। अब्दुल की उम्र 68 वर्ष की हो गई है। उन्होंने बताया कि गुरुद्वारा उनके सामने बना है। वह बचपन से वहां आते-जाते रहे हैं। अक्सर लंगर भी छकते हैं। गुरुद्वारे में सजे विशेष दीवान की सजावट भी नदीम उर्फ राजा ने फूलों और रंगीन चुनरी से की।
क्षेत्र के रहने वाले इंतखाब,नौशाद और इफान अपने वाहन हटाकर श्रद्धालुओं के वाहन पार्क कराते हैं। मुख्य ग्रंथी रविंद्र सिंह ने बताया कि कोरोना काल में जब सब कुछ बंद था। तब भी आसपास के लोगों ने बड़ा सहयोग किया था। बताया कि यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। आसपास में सिख समाज का सिर्फ एक मकान है। बाकी सभी मकान मुस्लिम भाई लोगों के हैं।