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ऑनलाइन पढ़ाई के बाद पब्लिक स्कूलों ने भेजा फीस का मैसेज तो पैरेंट्स ने किया विरोध, शुरू करने जा रहे ये अभियान रास्ते में किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली। गांव वालों ने जरूर उसकी मदद की। जहां भी जरूरत पड़ती है गांव वालों से खाना बनाने के लिए आटा और अन्य सामग्री ले लेता है और कहीं भी सड़क के किनारे खाना बनाकर अपना और बच्चों का पेट भर लेता है। छोटा कहता है कि मार्च माह में अचानक लॉकडाउन होने से काम बंद हो गया। एक माह तक काम शुरू होने की उम्मीद में वे लोग करनाल में रहे, लेकिन एक के बाद एक लॉकडाउन बढ़ता गया। इससे उसके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। उसके साथी पैदल और ट्रकों से निकल चुके थे, लेकिन वह अपनी विकलांग पत्नी को छोड़कर कहां जाता। उसने रिक्शे से ही अपने घर आने का मन बनाया। करनाल से मुजफ्फरनगर आने के लिए कोई साधन न मिलने से वह बीस दिन तक परेशान रहा। आखिर में वहीं पुराना रिक्शा और परिवार के सभी लोगों को रिक्शे में बैठाकर निकल पड़ा वह अपने घर के लिए।
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एसपी सिटी के एस्कॉर्ट का सिपाही मिला कोरेाना पॉजिटिव तो मुठभेड़ में घायल गोकश भी मिले संक्रमित छोटा का कहना है कि रास्ते में दो दिन भूखे रहकर रिक्शा चलाया। बच्चों को पानी में बिस्किट देकर बहलाया। छोटा की पत्नी कहती है कि करनाल अब कभी नहीं जाऊंगी। घर में रूखी-सूखी खाकर रहूंगी, लेकिन बाहर की तरफ अब रुख नहीं करना है। 35 साल की उम्र में ऐसा समय पहले कभी नहीं देखा है। लॉकडाउन के बाद मानों दुखों का पहाड़ टूट गया हो। आटा, सब्जी, दवा सब बंद हो गया था। कभी सूखी रोटी तो कभी भूखे पेट बच्चों को सुलाया। कुछ दिन बाद आटा और सब्जी मिली।