अखिलेश यादव को ऐलान, बोले- जौहर यूनिवर्सिटी को बचाने के लिए प्रदेशभर में आंदोलन करेगी सपा
यह कहना है सोपोर के बशीर अहमद का, जिसका अपना सेब का छोटा सा बाग़ान है लेकिन वह इस समय मेरठ में रिक्शा चलाकर कश्मीरी शॉल और गर्म कपड़े बेच रहे हैं। बशीर ग्रेजुएशन कर रहे हैं, उनका कहना है कि हमकों अनुच्छेद-370 से कोई मतलब नहीं है, हमकों तो रोजगार चाहिए। बशीर के साथ चल रहे अशरफ ने बताया कि उनके पांच बच्चे हैं लॉक डाउन ( lockdown ) के बाद से हालात और खराब हो गए हैं। हम यहां हर साल आते हैं लेकिन इस बार यहां भी धंधा मंदा है।बारामूला के अकरम मलिक कहते हैं कि मोदी के आने से घाटी में आतंकवाद बहुत कम हो गया है। पार से आने वाले लोगों के बारे में एक सूचना पर फौज की बटालियन पहुंच जाती है। पहले अपने ही गांव में दहशत में जीते थे लेकिन अब बच्चे भी खेलते हैं और गांव की दुकानें भी खुलती हैं। अकरम ने बताया कि पार से अब लोगों का आना बंद हो गया है। फौज के अलावा कुछ स्वंयसेवी संस्थाओं की मदद से गांव की महिलाओं को ट्रेनिंग दी जा रही है जिससे थोड़ी मदद मिल रही है।
अकरम के अलावा रफीक, अमानुल और जिशान नामक युवक का कहना है कि कश्मीर के युवकों को रोजगार चाहिए। अगर रोजगार मिलेगा तो हम क्यों हिन्दुस्तान के दूसरे शहरों में जाएंगे। मोदी सरकार ( Modi government )
कश्मीर के युवकों को रोजगार उपलब्ध कराए। हम हिंदुस्तानी हैं हमसे हमारी पहचान न पूछी जाए। सियासत में क्या हो रहा है इससे हमको मतलब नहीं। घाटी का विकास हो और वहां पर हमारे बच्चों के लिए पढ़ाई की बेहतर सुविधा मिले हमको कश्मीरी नहीं हिन्दुस्तानी कहा जाए।