बरसात में बढ़ जाता है सापों के काटना का मामला मेरठ में सपेरों की अच्छी खासी जनसंख्या निवास करती है। कुछ गांवों में तो सपेरों की बकायदा बस्तियां बनीं हुईं हैं। इन्हीं में से एक गांव हैं चितवाना शेरपुर। जहां पर सपेरों की एक बड़ी आबादी रहती है। इन्हीं सपेरों का दावा है कि मेरठ के ग्रामीण इलाकों में घोड़ा पछाड़ और कोबरा सांप अधिक संख्या में पाया जाता है। 70 वर्षीय रामनाथ का कहना है कि हस्तिनापुर के आसपास खादर के इलाके में चप्पे-चप्पे पर इन कोबरा सांपों के बिल बने हुए हैं। कुछ जगह तो ऐसी हैं जहां पर लोग जाते ही नहीं। गर्मी और बरसात के मौसम में सांप द्वारा काटे जाने के मामले भी बढ़ जाते हैं।
सांपों को प्रिय है भुरभुरी मिट्टी और आर्द्र जलवायु जन्तु वैज्ञानिक डॉ. टीआर सिंह कहते हैं कि कोबरा और घोड़ा पछाड सांप बरसात होते ही उन्मुक्त विचरण करने लगते हैं। बिलों में पानी भर जाने से ये बाहर निकल आते हैं। मेरठ का हस्तिनापुर के अलावा करीब पूरा ग्रामीण इलाके की मिट्टी भुरभुरी और आर्द्र जलवायु वाली है। जो कि इन सांपों को प्रिय है। कोबरा चूंकि शीत प्रकृति का सांप है, लिहाजा इलाके की आबोहवा सदियों से उसे रास आती रही है। भुरभुरी मिट्टी होने के कारण दीमक यहां अपनी बांबियां (मिट्टी के टीले) बना लेते हैं जिनमें घुस कर सांपों के जोड़े जनन करते हैं और दीमकों को चट कर जाते हैं।
इस इलाके में है सात अत्यंत विषैली प्रजातियां सांपों ने इन इलाकों में आज से नहीं सैकड़ों साल से अपना डेरा बनाया हुआ है। उन्होंने बताया कि कोबरा की भी कई प्रजातियां होती हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि हर प्रजाति खतरनाक या जहरीली हो। लेकिन जिस तरह से अभी हाल में कोबरा द्वारा काटे जाने के मामले सामने आए हैं और उससे मौतें हुईं। यह चिंता की बात है। इसके बारे में वन विभाग को सोचना होगा और इन जहरीले सांपों पर अंकुश लगाने के लिए कोई उपाय करने होंगे। कोबरा की चार और करैत की तीन अत्यंत विषैली प्रजातियां इस इलाके में संभवत: हैं।