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अतीक और मुख्तार अंसारी के बाद कुख्यात बद्दो की संपत्ति की कुर्की शुरू, मौके पर पुलिस फोर्स तैनात बता दें कि 70 के दशक में बद्दो के पिता चरन सिंह अमृतसर के मुद्दर गांव से ड्राइवरी करने मेरठ आए थे। बद्दो भी उनके साथ आया था। पिता चरन सिंह ने उसका एडमिशन शहर के एक प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में करवाया, लेकिन बद्दो का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। इसलिए उसने दसवीं में स्कूल छोड़ दिया। फिर वह शराब की थैलियों की तस्करी करने लगा। 90 के दशक में उसने केबल टीवी कारोबार में कदम बढ़ाए। इसमें बद्दो के दुश्मन बढ़े तो पत्नी जैस्मीर कौर बच्चों को लेकर सिडनी चली गई। वहां होटल कारोबार खड़ा कर दिया।
देशी-विदेशी टॉप ब्रांड का शौकीन फिल्मी डॉन की तरह बद्दो की ज़िंदगी रंगीनियों से भरी रही हैं। उसकी महिला मित्रों की लंबी फेहरिस्त है। बद्दो देशी-विदेशी टॉप ब्रैंड्स का शौक रखता है। लाखों की राडो की घड़ियां, रेबैन के महंगे चश्मे, अरमानी के सूट और बुलेट प्रूफ विदेशी गाड़ियों की रेंज उसकी शख़्सियत को आम गैंगस्टर से अलग करती है। पर्शियन बिल्लियों को हाथ में रखना बद्दो अपना गुडलक मानता है।
जासूसी और विदेशी महिला माफियाओं के नोबेल का शौक बदन सिंह बद्दो को विदेशी महिला मफियाओं की जीवनी पढने और जासूसी नोबेल पढ़ने का शौक है। उसके बंगले में कुर्की के दौरान मिले नोबेल और किताबें उसके शौक को बया करती हैं। माना जा रहा है कि इन्हीं नोबेल और जासूरी उपान्यासों को पढ़कर बदन सिंह बद्दो अपराध करने के तरीके तलाशा करता था। इन उपन्यासों में अपराधों के तरीके और पुलिस के बचने की कई कहानियां छपी हुई हैं। विदेशी महिला माफियाओं के किस्से पढ़कर वह शातिराना चालों का जाल बुना करता था।