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मेरठ

किसानों के मसीहा, गैर कांग्रेसी लीडर और जाटलैंड के सबसे दमदार नेता चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर पढ़िए उनकी कहानी

भारतीय राजनीति और किसानों के बीच चौधरी चरण सिंह ने ऐसी छाप छोड़ी जिसकी बराबरी आज के नेताओं में शायद ही कोई कर पाया है।

मेरठMay 29, 2023 / 09:57 am

Vikash Singh

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साल 1950 में चौधरी साहब ने जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की शुरुआत की थी। इसके तहत पूरे भारत में जारी सामंती व्यवस्था को खत्म किया गया।


Chaudhary Charan Singh Death Anniversary: चौधरी चरण सिंह भारत के एक ऐसे प्रधानमंत्री का नाम जो किसानों की सत्ता के प्रबल समर्थक थे। चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में हुआ था। लोग उन्हें बड़े चौधरी के नास से भी बुलाते थे।
उनकी जयंती 23 दिसंबर को ‘किसान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह का 29 मई 1987 को निधन हो गया था।

लॉ में स्नातक थे चौधरी चरण सिंह, आर्य समाज में हो गए थे शामिल
चरण सिंह ने 1927 में मेरठ कॉलेज से कानून में स्नातक करके गाजियाबाद में एक वकील के रूप में काम शुरू किया। वे स्वामी दयानंद सरस्वती के दर्शन से प्रभावित थे और आर्य समाज में शामिल हो गए थे। एक आर्य समाजी होने के नाते वो जातिवाद के घोर विरोधी थे। वे संतकबीर, महात्मा गांधी और सरदार पटेल से भी प्रभावित थे।
 

चरण सिंह एक ऐसे प्रधानमंत्री जो संसद का सामना नहीं कर सके, यूपी के CM भी रहे


चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीती के इतिहास में पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने संसद का सामना नहीं किया था। मामला कुछ ऐसा था की गठबंधन की सरकार में इंदिरा गांधी ने समर्थन वापस ले लिया था। चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक प्रधानमंत्री रहे।

वह कुल साढ़े 6 महीने भारत के प्रधानमंत्री रहे। इसके अलावा चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, देश के गृह मंत्री, केंद्रीय वित्त मंत्री, उप प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में भी देश की सेवा कर चुके हैं।

साल 1950 में चौधरी साहब ने जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की शुरुआत की थी। इसके तहत पूरे भारत में जारी सामंती व्यवस्था को खत्म किया गया और यह सुनिश्चित किया गया कि किसान अपनी खेती की भूमि पर स्वामित्व अधिकार प्राप्त करें। ये उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी।

उन्होंने अपनी सरकार के कार्यकाल के दौरान ऋण सुविधाओं में सुधार, कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP बढ़ाने और कृषि बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए नीतियां पेश की थीं।

 
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सोवियत-झुकाव वाली आर्थिक नीति का किया था विरोध पर नेहरू से हुआ था मतभेद
सन् 1952 में चरण सिंह राजस्व मंत्री बने और 1 जुलाई 1952 को यूपी विधानसभा में जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम के माध्यम से जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया। नागपुर कांग्रेस सत्र में जवाहर लाल की सोवियत-झुकाव वाली आर्थिक और सामूहिक भूमि नीतियों का उन्होंने विरोध किया था। वो किसानों के स्वामित्व के हिमायती थे।
चौधरी चरण सिंह ने मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री के पदों पर रहते हुए ग्रामीण विकास के महत्व पर जोर दिया और शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच का अंतर पाटने के लिए हर संभव कोशिश किया।
बड़े चौधरी ने किसानों के प्रति समर्पण और एक कृषि समाज के लिए अपनी दृष्टि से भारतीय राजनीति पर एक अमिट छाप छोड़ दी। जिसकी बराबरी करना आज के किसी जननेता का सपना होना चाहिए।
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यूपी के पहले गैर-कांग्रेसी सीएम, जनता पार्टी के साथ विलय में हुए शामिल


नेहरू से मतभेद होने के बाद कांग्रेस में उनकी स्थिति कमजोर हुई, हालांकि किसान कौम उनके साथ थी। 1 अप्रैल 1967 को चरण सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल का गठन किया। वह यूपी के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। चरण सिंह साल 1967 से 1968 और 18 फरवरी 1970 से 1 अक्टूबर 1970 तक दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे।
साल 1977 में गैर-कांग्रेसी राजनीतिक दलों के विलय के साथ जनता पार्टी का गठन किया गया था। चौधरी चरण सिंह की पार्टी भी शामिल हुई। चरण सिंह प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे लेकिन जय प्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी ने मोरारजी देसाई को पीएम बनाया।
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चरण सिंह की मोरारजी से नहीं बनती थी इसलिए गिराई देसाई सरकार


चरण सिंह की प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ नहीं बनती थी। राशिद किदवई ने अपनी किताब भारत के प्रधानमंत्री में लिखा है कि देसाई सरकार में जब जनसंघ के सदस्यों को दोहरी सदस्यता देने की बात सामने आई तो चरण सिंह ने इसका विरोध किया। उन्होंने इन सदस्यों को निकालने की मांग रखी। लेकिन जब उनकी मांग नहीं मानी गई तो उन्होंने संजय गांधी से मुलाकात मोरारजी सरकार गिरा दी।
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चरण सिंह ने सावरकर जयंती मनाने से कर दिया था मना


यह घटना तब की है जब चौधरी चरण सिंह 18 फरवरी, 1970 को इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस यानी आर के मदद से यूपी के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे। उसी साल 27 मई को सावरकर की जयंती को लेकर बदायूं से भारतीय जनसंघ के नेता कृष्ण स्वरूप ने पूछा कि क्या सरकार सावरकर जयंती मनाने की योजना बना रही है? तब सूचना मंत्री गेंदा सिंह ने जवाब दिया-ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।
जब कृष्ण स्वरूप ने इस मुद्दे को उठाना जारी रखा तो चरण सिंह ने कहा कि उन्होंने जनसंघ के नेताओं से बात हो गई थी। सुझाव अच्छा है लेकिन इतने कम समय में समारोह की योजना बनाना संभव नहीं।
इसके बाद कृष्ण स्वरूप ने पूछा कि क्या सरकार अगले साल सावरकर जयंती मना सकती है? तो चरण सिंह ने कहा- जहां तक सावरकर के बलिदानों का सवाल है, यह किसी भी संदेह से परे है। हम सभी ने अपनी युवावस्था में उनसे बहुत प्रेरणा ली है। लेकिन सरकार के स्तर पर किन-किन की जयंती मनाई जाएगी? अभी तक हमने इस पर विचार नहीं किया है।
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