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मेरठ

ये ‘फाइव मिस्टेक’ कोरोना संक्रमितों में बन रही फंगस का कारण

चिकित्सक बोले फंगस का नहीं होता कोई रंग, कोरोना के कारण फंगस को घातक रूप से पनपने का मिल रहा मौका, हर जगह मौजूद रहता है फंगस

मेरठMay 25, 2021 / 03:32 pm

shivmani tyagi

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black fungus

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

मेरठ. कोरोना संक्रमित मरीज फंगस के शिकार हो रहे हैं लेकिन ये फंगस कभी इतना जानलेवा नहीं हुआ था जितना कि इस समय हो रहा है। चिकित्सकों के अनुसार यह मानव के नाक और आंख हर जगह मौजूद हो सकता है लेकिन इतना सक्रिय नहीं रहता। गोबर, खाद, धूल और सड़े-गले पदार्थों जैसे सब्जियां आदि हर जगह फंगस पाया जाता है और ज्यादातर भारतीय मानव इन सब चीजों के करीब ही रहते हैं। मगर कोरोना की परिस्थितियों ने ऑक्सीजन सप्लाई से लेकर इम्युनिटी घटाने तक ऐसा कहर बरपाया है कि इस फंगस को तेजी से विकास करने का वातावरण मिल गया।
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मेरठ मेडिकल कॉलेज के कोरोना वार्ड प्रभारी रहे डॉक्टर वेद प्रकाश के मुताबिक फंगस इंफेक्शन होना इतना आसान नहीं है। उन्होंने बताया कि फाइव मिस्टेक ( five mistakes ) फंगस की वजह ( causing fungal formations ) बन रही हैं जिनके कारण लोग इसके शिकार बन रहे हैं।
उन्होंने बताया कि जानलेवा फंगस 25-30 डिग्री सेल्सियस में सबसे अधिक सक्रिय रहते हैं। इसी दौरान इनका विस्तार होता है। एयर कंडीशन कमरे में भर्ती कोविड के मरीजों को यह तापमान मिल जाता है तो ऐसे में फंगस को पनपने का अवसर मिल जाता है। दूसरी वजह मेडिकल उपकरणों को बार-बार विसंक्रमित न करने की वजह से फंगस पनपने का का खतरा रहता है। तीसरा बड़ा खतरा ऑक्सीजन सिलेंडर की ट्यूबिंग को साफ नहीं किया जाना है। ऐसा ना करने से बोतल की सतह पर मौजूद फंगस सीधे श्वसन तंत्र में पहुंच सकता है। चौथी गलती डायबिटीज के मरीज कोविड रिकवरी में स्टेरॉयड का अनियंत्रित इस्तेमाल करना है। इनका इस्तेमाल करने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता इतनी कमजोर हो जाती है कि फंगस शरीर को कब्जे में लेना शुरू कर देता है। पांचवी और अंतिम गलती
फंगस का कोई रंग नहीं
डॉक्टर वेद प्रकाश का कहना है कि ब्लैक, व्हाइट या यलो फंगस कह-कहकर लोगों को डराया जा रहा है जबकि फंगस का कोई रंग नहीं होता। यह रंग तो शरीर में संक्रमण के बाद तय होता है जब नाक से काला द्रव निकलता है तो ब्लैक फंगस, सफेद होता है तो व्हाइट और पीला आता है यलो फंगस कहा जा रहा है।

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