मेरठ. जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर जब बुजुर्गों को अपनों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब इनके अपने ही उन्हें अपने पास रखने के बजाय वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं। आर्थिक स्थिति मजबूत होने के बावजूद भी इनके अपनों ने इन्हें वृद्धाश्रम में इनके हाल पर जीने के लिए छोड़ दिया है। इतना ही नहीं यहां रह रहे बुजुर्गों में किसी का बेटा विदेश में अफसर है, तो किसी का भार्इ मंत्रालय में अफसर। यहां किसी वृद्धा को छह महीने तो एक साल हुआ है, किसी को इससे भी ज्यादा का समय। अब यहां अपनों की राह देखते देखते इनकी आंखें पथरा गर्इ हैं। दिन आैर रात अपनों के बगैर कैसे गुजारते हैं ये बुजुर्ग आैर कैसे यहां तक पहुंचे, इनकी अपनी-अपनी अलग कहानी है, जिन्हें सुनाते-सुनाते इनकी जुबान लड़खड़ा जाती है आैर आंखें नम हो जाती हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं गंगानगर स्थित श्री सार्इं सेवा संस्थान वृद्धाश्रम की। मेरठ कैंट की अफसर व इनके परिवार के लोग जब इस वृद्धाश्रम में बुजुर्गों से मिलने पहुंचे तो उनकी भी आंखें भर आईं।
गजब: परिवार कर रहा था जुड़वां बच्चों का इंतजार, पैदा हो गए चार बता दें कि मेरठ कैंट की 622 र्इएमर्इ बटालियन के अफसर व इनके परिवार के लोग वृद्धाश्रम में इनसे मिलने पहुंचे। सीआे नीशू बालियान, कैप्टन किरणदीप कौर, मधु त्यागी, भूमिका मलिक व कामिनी शर्मा ने यहां के एक-एक व्यक्ति से बातचीत की आैर उनका हाल जाना। इन्होंने जब अपनी-अपनी कहानी बतार्इ, तो महिला सैन्य अफसरों व इनके परिवार के लोगों की आंखें नम हो गर्इं। दरअसल, इन वृद्धजनों के परिवार के लोग इन्हें बिना कुछ बताए यहां वृद्धाश्रम में छोड़ गए थे, इसके बाद से उन्होंने पलटकर सुध भी नहीं ली, इसलिए जब भी कोर्इ इनसे मिलने आता है तो इसी इंतजार में रहते हैं कि वह इनके परिवार के लोगों की खैर-खबर लेकर आए हैं। महिला सैन्य अफसर व इनके परिवार के लोग काफी समय तक इनके बीच रहे आैर इन्हें कंबल, बैडशीट, कपड़े व खाने का सामान देकर इनकी मदद की। साथ ही उन्होंने वृद्धाश्रम की संचालिका नम्रता शर्मा की हौसलाफजार्इ की आैर फिर आने का वादा कर गर्इं।
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