30 % आकाश मिसाइल टेस्ट में फेल, 4 साल बाद भी चीन सीमा पर नहीं हो पाई तैनाती
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने रिपोर्ट दी है कि भारतीय वायुसेना को मिले आकाश मिसाइलों में से कम से कम 30 फीसदी शुरुआती जांच में फेल हो गए। 1962 के युद्ध के बाद भारत और चीन में तनाव इस समय बहुत बढ़ गया है। एक माह से अधिक समय से भारत और चीनी सेना डोकलाम में आमने-सामने डटी हैं।
नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने रिपोर्ट दी है कि भारतीय वायुसेना को मिले आकाश मिसाइलों में से कम से कम 30 फीसदी शुरुआती जांच में फेल हो गए। 1962 के युद्ध के बाद भारत और चीन में तनाव इस समय बहुत बढ़ गया है। एक माह से अधिक समय से भारत और चीनी सेना डोकलाम में आमने-सामने डटी हैं। सबसे अहम बात यह है कि डोकलाम सिलीगुड़ी कॉरिडोर से कुछ ही किमी दूर है। उसके बाद कैग की रिपोर्ट से यह साबित होता है कि भारत की रक्षा तैयारियां चीन के मुकाबले बहुत खराब स्थिति में हैं। सरकार ने देश पर हमले के खतरे से निपटने के लिए 2010 में इसे वायुसेना में शामिल करने को मंजूरी दी थी। सेना इस मिसाइल सिस्टम के लिए 95 फीसदी भुगतान कर चुकी है।
चीनी सीमा के पास स्थित इस्टर्न एयर कमांड के सूत्रों के मुताबिक प्रतिद्वंद्वी चीन के सीमाई इलाके में तेजी से किए जा रहे अधोसंरचना विकास को देखते हुए 2009 में यह तय किया गया कि क्षेत्र में शक्ति संतुलन के लिए भारतीय सेना को ‘प्रतिरोधी’ की जगह ‘रक्षात्मक’ क्षमता की जरूरत है। चरणबद्ध तरीके से रक्षात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए इन मिसाइलों को सिलिगुड़ी कॉरिडोर में जून 2013 से दिसंबर 2015 के बीच तैनात करना था लेकिन इन मिसाइलों को चार साल की देर के बाद भी चीन सीमा पर तैनात नहीं किया जा सका है।
विश्वसनीय नहीं है आकाश मिसाइल
डीआरडीओ की ओर से विकसित इस मिसाइल को वायुसेना में 1994 में पिचोरा मिसाइल सिस्टम की जगह शामिल करना था। रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि युद्ध जैसी स्थिति में आकाश मिसाइल का प्रयोग विश्वसनीय नहीं है और इसी कारण इन्हें पूर्वी सीमा पर तैनात ही नहीं किया गया है। आकाश जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल है। यह 30 किलोमीटर दूर से 1800 मीटर की ऊंचाई पर अपने लक्ष्य को भेद सकती है।
‘चिकन नेक’ सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर करना था तैनात
इस स्वदेशी मिसाइल को भारत के ‘चिकन नेक’ कहलाने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर सहित चीन सीमा से सटे 6 अहम बेस पर लगाने की योजना थी। कैग ने गुरुवार को संसद के समक्ष रखी अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 2013 से 2015 के बीच ही ये मिसाइल इन जगहों पर लगाए जाने थे, लेकिन अब तक कोई भी मिसाइल लगाया नहीं गया है।
6 से 18 माह के विलंब के बाद मिले मिसाइल
नवंबर 2010 में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने इस्टर्न एयर कमांड के लिए 3619.25 करोड़ रुपए इस मिसाइल सिस्टम की खरीद के लिए मंजूर किए थे। ये मिसाइल कमांड को जून 2013 से दिसंबर 2013 के बीच मिल जाने चाहिए थे लेकिन 6 से 18 माह के विलंब के बाद अप्रेल 2014 से जून 2016 के बीच मिले थे।
एयरफोर्स कर चुकी है 3800 करोड़ रुपए का भुगतान
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बेल) द्वारा बनाई गई, इन मिसाइलों की कुल लागत करीब 3900 करोड़ रुपए है, जिनमें से एयरफोर्स ने 3800 करोड़ रुपए का भुगतान भी कर दिया है। पूर्वी सीमा पर वास्तविक नियंत्रण (एलएसी) रेखा के करीब भारतीय वायु सेना को छह आकाश मिसाइल स्क्वाड्रन तैनात करना था। चीन ने तिब्बत में आठ पूरी तरह चालू एयरबेस बना रखे हैं। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘बड़ा मसला यह है कि सैम्पल टेस्ट में 30 फीसदी तक फेल होना इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है, जबकि इसको आधार बनाते हुए ही 95 फीसदी भुगतान किया जा चुका है।
मिसाइल का जीवन काल, 10 साल
बदतर बात यह है कि सीएजी के मुताबिक कम से कम 70 मिसाइल का जीवन काल कम से कम 3 साल ऐसे ही इस वजह से बेकार हो गया, क्योंकि उनके रख-रखाव के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी। प्रत्येक आकाश मिसाइल की लागत करोड़ों में होती है। इसी वजह से 150 अन्य मिसाइल का जीवन काल दो से तीन साल और 40 मिसाइल का जीवन काल एक या दो साल कम हो चुका है। आकाश मिसाइल का जीवन काल ‘उत्पादन तिथि’ से 10 साल तक होता है और उन्हें कुछ नियंत्रित दशाओं में संग्रह करना पड़ता है। यूपीए सरकार ने साल 2010 में ही आकाश मिसाइल की सिलीगुड़ी कॉरिडोर में तैनाती को मंजूरी दे दी थी।