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कोरोना काल में Air Pollution होगा जानलेवा, दिल्ली सरकार ने बनाई विशेष योजना

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ( Arvind Kejriwal ) ने बुधवार को दी जानकारी।
दिल्ली सरकार 800 हेक्टेयर खेतों से हटाएगी पराली।
अपने खर्चे से दिल्ली सरकार करेगी पराली का प्रबंधन।

Air pollution is deadly in COVID-19 period, Delhi CM Arvind Kejriwal shares special plan

Air pollution is deadly in COVID-19 period, Delhi CM Arvind Kejriwal shares special plan

नई दिल्ली। पराली के धुएं की वजह से पहले भी एनसीआर में लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पराली के इस धुएं को लोगों ने स्मॉग का नाम दिया। मुसीबत तो यहां तक बढ़ गई थी कि स्मॉग की वजह से कई लोगों को अस्थमा जैसी बीमारी ने घेर लिया। अब हालात ये हैं कि एक बार फिर से पराली की वजह से स्मॉग फैल सकता है। हालांकि अब चिंता करने की कोई बात नहीं है क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ( Arvind Kejriwal ) ने इस समस्या का हल निकाल लिया है।
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खबर है कि इस बार दिल्ली सरकार 800 हेक्टेयर खेतों से पराली को हटाने में किसानों की मदद करेगी। चिंता की बात ये है कि इस बार पहले से ही लोग कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहे हैं और उस पर पराली की मार लोगों के लिए चिंता का विषय बन सकती है। बुधवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पराली से निपटने की जानकारी दी। केजरीवाल ने बताया कि इस बार सरकार पराली का प्रबंधन खुद अपने खर्चे से करेगी, ताकि पराली से होने वाले धुएं से बचा जा सके।
इस बार दिल्ली सरकार पराली जलाने के लिए एक नई तकनीक का इस्तेमाल करेगी। इस बार पराली जलाने की बजाए एक विशेष प्रकार का घोल इस्तेमाल किया जाएगा। जिसकी वजह से पर्यावरण प्रदूषित नहीं होगा और ना ही इससे लोगों को कोई हानि पहुंचेगी। इस नई तकनीक का पूरा खर्चा सरकार करेगी।
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20 लाख का खर्च

इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 20 लाख रुपए का खर्चा आएगा। इस घोल का फायदा ये है कि इससे धान के डंठल भी पूरी तरह से खत्म होंगे और इससे खेतों की गुणवत्ता को भी फायदा पहुंचेगा। आपको बता दें कि ये दिल्ली के पूसा कृषि संस्थान में आईएआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बायो डीकंपोजर टेक्निक है। इसके जरिए खेतों की पराली को महज एक कैप्सूल की मदद से हटाया जा सकेगा।
सरकार करेगी खर्च

केजरीवाल ने कहा कि जो भी किसान इस नई तकनीक को अपनाएगा, उसके खेत में सरकार अपने खर्चे पर यह छिड़काव कराएगी। इस प्रणाली को अंजाम देने के लिए सरकार को किराए पर ट्रैक्टर लेने पड़ेंगे। इस प्रक्रिया को 5 अक्टूबर से शुरू किया जाएगा। 12 से 13 अक्टूबर तक खेतों में यह घोल डाल दिया जाएगा।
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एक हेक्टेयर में चार कैप्सूल काफी

पराली को जलाने के लिए चार कैप्सूल एक हेक्टेयर के लिए काफी होंगे। इस कैप्सूल के जरिए लगभग 25 लीटर घोल बनाया जा सकता है। यह घोल कैप्सूल में गुड़, नमक और बेसन डालकर तैयार किया जाएगा। इस घोल से पराली का जो मोटा मजबूत डंठल होता है, वह डंठल करीब 20 दिन के अंदर मुलायम होकर गल जाता है। उसके बाद किसान अपने खेत में फसल की बुआई कर सकता है।
बढ़ेगी मिट्टी की उत्पादन क्षमता

केजरीवाल ने कहा हर साल अक्टूबर में किसान अपने खेत में खड़ी धान की पराली जलाते हैं, जिसकी वजह से पराली का सारा धुआं उत्तर भारत के दिल्ली सहित कई राज्यों में स्मॉग की तरह फैल जाता है। इसका दुष्प्रभाव किसानों के साथ-साथ सभी को झेलना पड़ता है। खेत में पराली जलाने से खेत की मिट्टी खराब हो जाती है। मिट्टी के अंदर जो फसल के लिए उपयोगी बैक्टीरिया और फंगस होते हैं, वो भी मर जाते हैं। इसलिए खेत में पराली जलाने की वजह से किसान को नुकसान ही होता है। इसके जलाने से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। इस नई तकनीक से मिट्टी की उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और वह खाद का काम करेगी।
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