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बंगाल में ओवैसी बिगाड़ सकते हैं ममता दीदी का खेल, जानिए कैसे हो सकता है BJP का फायदा !

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, पश्चिम बंगाल की कुल आबादी में 27.01 % मुस्लिम थे। साल 2020 तक ये आंकड़ा 30 फीसदी के करीब पहुंच गया है। बंगाल विधानसभा की 294 सीटों में से 100 से 105 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक होते हैं। ये जिधर गए उधर सत्ता भी चली जाती है।

नई दिल्लीDec 04, 2020 / 09:06 pm

Vivhav Shukla

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Asaduddin Owaisi’s entry into Bengal set to change equations

नई दिल्ली। साल 2021 के अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल (2021 West Bengal Legislative Assembly election) में चुनाव होने हैं, लेकिन भाजपा और ममता बनर्जी की पार्टी अभी से तैयारी करने में जुट गई है। इनके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी बंगाल चुनावों में कूद पड़ी है। ओवैसी के मैदान में उतरने के बाद बंगाल की राजनीति का समीकरण पूरी तरह से बिगड़ सकता है।

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दरअसल, ममता अपने ठोस अल्पसंख्यक वोट बैंक के समर्थन से लगभग दस साल से सत्ता में हैं लेकिन इस बार AIMIM के मैदान में उतरने के बाद उनके वोट हर हाल में बटने वाले हैं। जानकारों के मुताबिक ओवैसी ममता के वोट बैंक में सेंध लगाकर उनका खेल बिगाड़ने वाले हैं, जिसकी वजह से भाजपा का अच्छा फायदा हो सकता है।

बिहार के चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के बाद ओवैसी ने BJP को बंगाल में हराने के लिए ममता को चुनाव पूर्व गठजोड़ करने के लिए भी कहा था, लेकिन ममता ने उन्हें सिरे से नकार दिया। इतना ही नहीं ममता ने ओवैसी पर बीजेपी से पैसे लेकर बंगाल में चुनाव लड़ने का आरोप भी लगा दिया।

वहीं, इस आरोप पर BJP के प्रदेश अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष अली हुसैन का कहना है कि बंगाल की सत्ता हासिल करने के लिए पार्टी को AIMIM या किसी और की सहायता की जरूरत नहीं है। हुसैन कहते हैं कि, हमें अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए ओवैसी की पार्टी की जरूरत नहीं है। बीते लोकसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि बंगाल में अब इस तबके के वोट भी बीजेपी को मिल रहे हैं।

कैसे मिलेगा भाजपा को फायदा?

दरअसल, 2014 लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा साल दर साल मजबूत होती जा रही है। बंगाल में भी भाजपा पहले की तुलना में मजबूत हो गई है। ऐसे में औवेसी का बंगाल के चुनाव में उतरना पार्टी के लिए हर तरफ से फ़ायदेमंद है।

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, पश्चिम बंगाल की कुल आबादी में 27.01 % मुस्लिम थे। साल 2020 तक ये आंकड़ा 30 फीसदी के करीब पहुंच गया है। बंगाल विधानसभा की 294 सीटों में से 100 से 105 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक होते हैं। ये जिधर गए उधर सत्ता भी चली जाती है।

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साल 2006 तक राज्य के मुस्लिम वोट वाम मोर्चा की तरफ थे, लेकिन इसके बाद इनका ध्यान ममता सरकार की तरफ गया और इन्हीं के दम पर साल 2011 और 2016 में ममता को बंगाल की सत्ता मिली। हालांकि, अब जब इस बार चुनाव में ओवैसी भी उतरेगें तो जाहिर तौर पर मुस्लिम वोट उनके साथ होगें। ये वही वोट होगें जो तृणमूल कांग्रेस से कटेंगे। ऐसे में भाजपा को हर हाल में फायदा होगा।

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ममता को हराना इतना भी आसान नहीं

ओवैसी ने तो चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया है, लेकिन अल्पसंख्यकों का वोट पाना इतना भी आसान नहीं है। दरअसल, सत्ता में रहते हुए ममता लगातार अल्पसंख्यकों के लिए कई योजनाएं शुरू कर चुकी हैं। ममता ने सरकार में रहते हुए अल्पसंख्यकों के मदरसों को सरकारी सहायता, मुस्लिम छात्रों के लिए स्कॉलरशिप, मौलवियों को आर्थिक मदद जैसी कई योजनाएं शुरू की थी। जिसका फायदा उनको इस चुनाव में जरूर मिलेगा।

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