मध्यप्रदेश में सडक़ दुर्घटनाओं की भरमार
प्रदेश भर में सडक़ पर ताबड़तोड़ दुर्घटनाएं हो रही हैं। सतना संभाग की ही बात करें तो नए साल में केवल ऊर्जाधानी सिंगरौली में ही आधा दर्जन से अधिक लोगों ने सडक़ पर अपनी जान गंवा दी, लेकिन जिम्मेदार हैं कि उनकी सारी कवायद केवल निर्देशों तक सीमित है। सतना व सीधी के अलावा सिंगरौली के जिला प्रशासन भी ऐसे कोई विकल्प तैयार नहीं कर सके, जिनसे सडक़ दुर्घटनाओं पर लगाम लग सके।
प्रसंगवश. सिंगरौली. प्रदेश भर में सडक़ पर ताबड़तोड़ दुर्घटनाएं हो रही हैं। सतना संभाग की ही बात करें तो नए साल में केवल ऊर्जाधानी सिंगरौली में ही आधा दर्जन से अधिक लोगों ने सडक़ पर अपनी जान गंवा दी, लेकिन जिम्मेदार हैं कि उनकी सारी कवायद केवल निर्देशों तक सीमित है। सतना व सीधी के अलावा सिंगरौली के जिला प्रशासन भी ऐसे कोई विकल्प तैयार नहीं कर सके, जिनसे सडक़ दुर्घटनाओं पर लगाम लग सके। सिंगरौली जिले में गौर फरमाया जाए तो दुर्घटनाओं को कम करने के लिए जिला प्रशासन की ओर से कई बार सिर्फ निर्देश ही जारी हुए हैं। उन पर अमल सुनिश्चित नहीं किया गया है। अमिलिया घाटी सहित दर्जन भर दुर्घटना बहुल स्थानों को खतरनाक स्थान घोषित कर वहां की सडक़ों को दुरुस्त करने का निर्देश दिया गया पर एमपीआरडीसी सहित अन्य संस्थाओं ने कुछ नहीं किया। एक दिन पहले जब कोल परिवहन कर रहे वाहन ने एक दंपती की जान ले ली तब प्रशासन नींद से जागा। अब जिला प्रशासन, पुलिस और ट्रांसपोर्टरों की जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में बैठक कर सडक़ दुर्घटनाओं पर लगाम लगाने को लेकर रणनीति बनाई गई है। कलेक्टर ने सडक़ दुर्घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए कोल परिवहन में लगे वाहनों को खदानों से समूह में निकालने को कहा है। वाहन समूह में रहेंगे तो उनकी रफ्तार धीमी होगी और दुर्घटनाओं पर लगाम लग सकेगी। इसमें मंशा भी अच्छी है कि सडक़ लोगों के खून से लाल न हो, लेकिन ऐसा केवल तब हो पाएगा, जब अधिकारी नियमित निगरानी कर निर्देशों को लागू कराएं। ऐसा न हो कि इस बार निर्देश केवल कागज तक ही सीमित होकर रह जाएं। इस बार जारी निर्देश अमल में लाए गए तो तय है कि दुर्घटनाओं से थोड़ी राहत मिल जाएगी। सिंगरौली सरीखे व्यवस्था दूसरे जिलों में भी यह लागू होनी चाहिए। साथ ही फुटपाथ पर बड़े वाहनों की पार्किंग पर भी नकेल कसने की जरूरत है, क्योंकि दुर्घटनाओं की एक बड़ी वजह यह भी है।
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