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Jaswant के स्टेट्समैनशिप का क्लिंटन ने माना था लोहा, दिल्ली का दौरा कर भारत-अमरीका दोस्ती की रखी नींव

1998 में दूसरा पोखरण परमाणु विस्फोट के बाद सख्त नाराज अमरीका को मनाने में सफल हुए थे जसवंत।
अमरीका से संबंधों को सुधारने के लिए 2 साल के अंदर 7 देशों में 10 स्थानों पर 14 बार तत्कालीन अमरीकी उप विदेश मंत्री से की बात।

नई दिल्लीSep 27, 2020 / 02:31 pm

Dhirendra

Jaswant-clinton

1998 में दूसरा पोखरण परमाणु विस्फोट के बाद सख्त नाराज अमरीका को मनाने में सफल हुए थे जसवंत।

नई दिल्ली। वर्तमान में भारत और अमरीका के बीच प्रगाढ़ दोस्ती के सूत्रधार व पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह (Jaswant Singh ) का आज निधन हो गया। वह असाधारण सूझबूझ वाले स्टेट्समैन थे। उनके स्टेट्समैनशिप का ही कमाल था कि 1998 में दूसरा पोखरण परमाणु विस्फोट के बाद भारत पर सख्त प्रतिबंध लगाने वाले अमरीका को वह मनाने में सफल हुए।
इतना ही नहीं तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने न केवल पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया बल्कि अपनी बेटी के साथ दोनों देशों के बीच भविष्य की दोस्ती की नींव रखने भारत दौरे पर भी आए। बिल क्लिंटन ने भी भारत के हनुमान के स्टेट्समैनशिप का लोहा भी माना था।
दरअसल, दूसरा पोखरण परमाणु विस्फोट के बाद अमरीका ने भारत पर कई तरह के सख्त प्रतिबंध लगा दिए थे। प्रतिबंधों का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर देखने को मिला था। अमरीका उस समय भारत की कुछ सुनने को तैयार नहीं था। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जसवंत सिंह को विदेश मंत्री की जिम्मेदारी सौंपते हुए अमरीका को राजी करने को कहा था।
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यह काम जसवंत सिंह के लिए भी आसान नहीं रहा। लेकिन उन्होंने धैर्य और सूझबूझ का परिचय दिया। जसवंत सिंह ने भारत-अमरीका संबंधों को पटरी पर लाने के लिए वहां के उप विदेश मंत्री टालबोट से दो साल के अंदर तीन महाद्वीपों के सात देशों में 10 स्थानों पर 14 बार मुलाकात की।
इन मुलाकातों का असर यह हुआ कि भारत-अमरीका के बीच संबंधों का नया दौर शुरू हो गया। इस वार्ता का ही परिणाम रहा कि अमरीकी राष्ट्रपति क्लिंटन अपनी बेटी के साथ भारत की यात्रा पर आए जो भारत-अमरीका रिश्तों में बड़ा मोड़ साबित हुआ।
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने अमरीका को सहज सहयोगी बताते हुए हाइटेक समझौतों की शुरुआत की जिसने 2005 में भारत-अमरीका नाभिकीय समझौते का रूप में सामने आया।

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जसवंत सिंह की राजनयिक सूझबूझ का असर यह रहा कि अमरीकी उप विदेश मंत्री टालबोट ने स्वीकार किया कि भारत ने बातचीत में अमरीका से ज्यादा फायदा हासिल किया। टालबोट ने अपनी किताब Engaging India: Diplomacy, Democracy and the Bomb में इस बात को स्वीकार किया। टालबोट ने कहा कि सिंह ने बातचीत में मुझसे ज्यादा अपना लक्ष्य हासिल किया।
बता दें कि पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह का राजस्थान ने बाड़मेर जिले के गांव जसोल में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने रेगिस्तान से दिल्ली तक का लंबा सफर तय किया। अजमेर के मेयो कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद वह सेना में भर्ती हुए। उसके बाद 1966 में राजनीति में आ गए। 1980 में पहली बार वह राज्यसभा पहुंचे और 1996 में अटल सरकार में वित्त मंत्री और फिर विदेश मंत्री भी बने। पूर्व पीएम वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई मंत्रालयों का कार्यभार संभाला।

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