रिपब्लिक इन पेरिल नामक रिपोर्ट दिल्ली के प्रेस क्लब आफ इंडिया में जारी की गई। वरिष्ठ पत्रकार और कमेटी के संरक्षक आनंदस्वरूप वर्मा, अंग्रेजी पत्रिका कारवां के राजनीतिक संपादक हरतोश सिंह बल और आॅल इंडिया विमेंस प्रेस कॉर्प्स की अध्यक्ष टीके राजलक्ष्मी ने रिपोर्ट को रिलीज करते हुए मीडिया को इस बारे में जानकारी दी। पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति ने अपनी रिपोर्ट में दिसंबर से लेकर फरवरी के बीच पत्रकारों पर हमले के तीन चरण गिनाए गए हैं। पहला चरण नागरिकता संशोधन कानून ( CAAJ ) के संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद जामिया के प्रोटेस्ट से शुरू होता है। इस बीच प्रेस पर सबसे ज्यादा हमले 15 दिसंबर से 20 दिसंबर के बीच हुए। इन हमलों में भीड़ और पुलिस दोनों की बराबर भूमिका रही।
जम्मू-कश्मीर: शोपियां में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ जारी, 2 आतंकी ढेर दूसरा चरण 5 जनवरी को जेएनयू परिसर में नकाबपोशों के हमले के दौरान सामने आया जब जेएनयू गेट के बाहर घटना की कवरेज करने गए पत्रकारों को भीड़ द्वारा डराया धमकाया गया, धक्कामुक्की की गई, नारे लगाने को बाध्य किया गया। प्रताड़ित पत्रकारों की गवाहियों से सामने आया कि इस समूचे प्रकरण में पुलिस मूकदर्शक बनकर खड़ी रही। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिसंबर और जनवरी की ये घटनाएं ही मिलकर फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई व्यापक हिंसा में तब्दील हो गई। जब खुलेआम पत्रकारों को उनकी धार्मिक पहचान साबित करने तक को बाध्य किया गया। दो दिनों 24 और 25 फरवरी के बीच ही कम से कम डेढ़ दर्जन रिपोर्टरों को कवरेज के दौरान हमलों का सामना करना पड़ा। जेके न्यूज 24 के आकाश नापा को तो सीधे गोली ही मार दी गई।
Yes Bank Crisis: अब राणा कपूर पर कसा CBI का शिकंजा, आज दिल्ली से मुंबई जाएगी जांच एजेंसियों बता दे कि पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति बहुत जल्द 2019 में पत्रकारों पर हुए हमलों की एक सालाना रिपोर्ट प्रकाशित करने जा रही है। इससे पहले दिसंबर, 2020 के अंत में सीएए विरोधी आंदोलन में प्रताड़ित पत्रकारों की एक संक्षिप्त सूची समिति ने प्रकाशित की थी।