व्यापक प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने किसानों को बातचीत के लिए 3 दिसंबर को समय दिया है, लेकिन किसानों ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि जब तक इन तीनों कानूनों को वापस नहीं लिया जाता और एमएसपी को कानूनी मान्यता नहीं दी जाती है, तब तक वे संघर्ष करते रहेंगे।
अब समझने की बात ये है कि आखिर इन तीन कृषि कानूनों में ऐसा क्या है, जिसको लेकर देशभर के किसान सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं और आखिर ये एमएसपी क्या है जिसकी मांग किसान कर रहे हैं? आइए आसान शब्दों में सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं सबकुछ…
किसान क्यों कर रहे हैं आंदोलन?
दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार ने संसद के पिछले सत्र में कृषि से जुड़े तीन कानूनों को पास किया है। ये तीन कानून हैं- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन-कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020।
अब इन तीनों कृषि कानूनों को लेकर देश के किसानों में अलग-अलग राय है, जिसपर विवाद छिड़ गया है और देश के अधिकतर किसान संगठन इन कानूनों को किसान विरोधी बता रहे हैं।
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लिहाजा इन्हें वापस लेने की मांग को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं और करीब 1 लाख किसानों ने दिल्ली कूच किया है। बताया जा रहा है कि इस किसान आंदोलन को देशभर के करीब 500 संगठनों का समर्थन है।
सरकार ने अब तक क्या कहा है?
किसानों के इस व्यापक आंदोलन को देखते हुए सरकार ने बातचीत के लिए किसानों को आमंत्रित किया है और 3 दिसंबर का वक्त दिया है, लेकिन किसान नहीं मान रहे हैं और इस बात पर अड़ गए हैं कि जब तक इन कानूनों को वापस लिए जाने के संबंध में लिखित आश्वासन नहीं दिया जाता है, तब तक यह आंदोलन समाप्त नहीं होगा।
फिलहाल, सरकार इन कानूनों को वापस लेने पर विचार नहीं कर रही है। सरकार का कहना है कि इन कानूनों के बनने से आने वाले दिन में किसानों के आय में बढ़ोतरी होगी और किसानों की जिंदगी बदल जाएगी। यह एक ऐतिहासिक फैसला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इन तीनों कानूनों की तारीफ करते हुए इसे किसानों को आजादी देने वाला निर्णायक कानून बताया है।
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हालांकि कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इन कानूनों को काला कानून करार दिया है और किसानों का शोषण करने वाला बताया है। सरकार में सहयोगी रही शिरोमणि अकाली दल ने इसका विरोध किया और 22 साल का नाता तोड़कर NDA से अलग हो गई। केंद्र में अकाली दल से सांसद और कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर ने इन कानूनों के विरोध में मंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था।
क्या हैं वो तीन नए कृषि कानून?
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020:- इस कानून के तहत सरकार ने एक नया इकोसिस्टम यानी व्यवस्था बनाने का प्रावधान किया है, जिसमें किसानों को अपनी फसल मनचाही जगह यानी मंडी और मंडी से बाहर दोनों जगहों पर बेचने की आजादी होगी। वह अपने राज्य और दूसरे राज्यों में भी जाकर अपनी फसल की खरीद-बिक्री कर सकते हैं। फसल की ब्रिकी पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। किसान ऑनलाइन भी बेच सकते हैं। इस कानून में किसानों के लिए मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन खर्च कम करने की बात कही गई है।
कृषक (सशक्तिकरण-संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020:- इस कानून के दायरे में अब किसान अपनी फसल के लिए बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ भी अपनी सुविधानुसार करार कर सकते हैं। यानी कि कृषि करारों (एग्रीकल्चर एग्रीमेंट) पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है।
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इस कानून के तहत किसी भी कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्म, प्रोसेसर्स, थोक और खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसान आसानी के साथ जुड़ सकते हैं। साथ ही साथ इस कानून के दायरे में किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बीज उपलब्ध कराना, फसल स्वास्थ्य की निगरानी, कर्ज की सुविधा और फसल बीमा की सुविधा देने की बात शामिल है। इस कानून के तहत फसल खराब होने पर कॉन्ट्रेक्टर को पूरी भरपाई करनी होगी। इससे उम्मीद जताई जा रही है कि किसानों की आय बढ़ेगी।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020:- इस नए कानून में आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में बदलाव किया गया है। नए कानून के तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटाने का प्रावधान है। इसके अलावा भी इसमें कई ऐसे प्रावधान हैं, जो किसानों के लिए बेहतरी साबित हो सकते हैं।
किसानों को क्या सता रहा है डर?
किसानों को इन कानूनों से कई तरह के डर है। किसानों को सबसे बड़ा डर ये है कि MSP का सिस्टम खत्म हो जाएगा। यदि किसान अपनी फसल मंडी के बाहर बेचने की शुरूआत की तो मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगी। इसके अलावा कॉन्ट्रैक्ट या एग्रीमेंट करने से किसान अपनी फसल का कीमत तय नहीं कर पाएंगे। देश के छोटे किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नहीं कर पाएंगे तो ऐसे में उनका क्या होगा? यदि कोई विवाद होता है तो उस स्थिति में बड़ी-बड़ी कंपनियों को ही फायदा मिलेगा। किसानों को जो सबसे बड़ी चिंता है वह है बड़ी कंपनियां आवश्यक वस्तुओं का स्टोरेज करेगी, जिससे कालाबाजारी और महंगाई बढ़ेगी। इसका लाभ किसानों को नहीं मिलेगा।
हालांकि किसानों के डर को दूर करते हुए कई बार सरकार ने ये कहा है कि MSP पहले की तरह जारी रहेगी और मंडियां खत्म नहीं होंगी। सितंबर महीने में प्रधानमंत्री ने खुद ये कहा था कि ये दुष्प्रचार किया जा रहा है कि सरकार द्वारा किसानों को MSP का लाभ नहीं दिया जाएगा। ये भी मनगढ़ंत बातें कही जा रही हैं कि किसानों से धान-गेहूं इत्यादि की खरीद सरकार द्वारा नहीं की जाएगी। ये सरासर झूठ है, गलत है, किसानों को धोखा है।
क्या है MSP?
एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) वह न्यूनतम समर्थन मूल्य है जिसे किसानों को उनकी फसल पर मिलता है। भले ही उसकी कीमत बाजार में उससे भी कम क्यों न हो। दरअसल, कई बार अलग-अलग कारणों से किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता है और किसान कर्ज के बोझ तले जब जाते हैं। ऐसे में इस समस्या से निकालने के लिए 1950-60 के दशक में सरकार ने एक कानून बनाते हुए ये प्रावधान किया कि कुछ फसलों पर किसानों को उनकी उपज पर न्यूनतम दाम दिया जाएगा।
सरकार हर फसल के सीजन से पहले CACP यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की सिफारिश पर MSP तय करती है। चूंकि यदि किसी फसल का जब पैदावार अच्छी होती है तो उनके दाम गिर जाते हैं और किसानों को नुकसान होता है। ऐसे में सरकार किसानों के फसल को तय MSP पर खरीदती है, जिससे किसानों को नुकसान न हो।