दरअसल, यह मामला 1991 यूपी बिजनौर की है। 27 साल पहले जट नगला निवासी मोहम्मद युसूफ की हत्या उकने विरोधियों ने कर दी थी। उस समय मोहम्मद मुकीम 11वीं कक्षा में पढ़ते थे। उन्होंने थाने में हत्या का मामला दर्ज कराया लेकिन गरीबी और तंगहाली के कारण इस केस को आगे नहीं बढ़ा पाए। पुलिस ने ऐसे मामलो में जो करती है वही किया और मामला दर्ज कर रफा दफा कर दिया। 27 साल बाद भी पुलिस इस हत्या पर से पर्दा हटा नहीं पाई। इस बीच यह मामला इतना पेचीदा हो गया कि हत्यारों की पहचान अब असंभव सा है।
इन परिस्थितियों का असर मोहम्मद मुकीम पर पड़ा और उन्होंने हत्यारों को सजा दिलाने की ठान ली। उन्होंने प्रारंभिक ग्रहण करने के बाद एएमयू से लॉ की पढ़ाई की। उसके बाद दिल्ली में रहकर न्यायिक सेवा परीक्षा की तैयारी की। मेहनत और प्रतिभा के बल पर न्यायिक सेवा में उनका चयन हो गया। वर्तमान में मुजफ्फरनगर में सिविल जज जूनियर डिविजन के पद पर कार्यरत हैं। लेकिन उनके यहां तक पहुंच पाना संभव नहीं होता अगर उनके बड़े भाई ने मजदूरी कर और एएमयू के दोस्तों ने अपने पॉकेट खर्च के पैसे पढ़ने व दिल्ली परीक्षा की तैयारी करने के लिए मुहैया नहीं कराए होते। मुकीम खुद भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि वह यहां तक अपने गरी भाई और दोस्तों के बल पर ही यहां तक पहुंच पाए हैं।
सिविल जज बनने के बाद मोहम्मद मुकीम को पता चला कि अज्ञात में पिता की हत्या के मामले में 27 साल बाद हत्यारों को सजा दिलाना असंभव का काम है। ऐसा इसलिस कि न तो पुलिस ने जांच सही से की न ही अभी तक हत्यारों का पता चल पाया। ऐसे में उन्होंने पिता को न्याय दिलाने के लिए संकल्प लिया कि वो जीवनपर्यंत न्यायिक सेवा में रहते हुए गरीबों और असहाय लोगों को न्याय दिलाने का काम करेंगे। इसका असर उनके आचरण में भी दिखता है। कोर्ट के पेशकार और जूनिय कर्मचारियों के साथ वो घर के सदस्य की तरह व्यवहार करते हैं, जिसकी वजह से लोग उन्हें अलहदा इंसान मातने हैं।