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बता दें कि 40 सीटों वाले विस्टाडोम यानी शीशे के गुंबद वाले कोच की घोषणा जून में ही पूर्व रेलमंत्री सुरेश प्रभ ने की थी। चेन्नई स्थित इंटिग्रल कोच फैक्टरी में अनुमानित लागत चार करोड़ रुपए से ये कोच बने हैं। वातानुकूलित इन कोचों में लंबे शीशे की खिड़कियां और छत बनी हैं। पर्यवेक्षण-कक्ष और घुमावदार सीटों वाले इन कोचों की सेवा प्रदेश में पहली बार शुरू होने वाली है जिसका मकसद बनीहाल और बारामूला के बीच 135 किलोमीटर के सफर के दौरान यात्रियों को मनोरम नजारे का अनुभव दिलाना है।
पर्यटकों को ध्यान में रखकर सीटों के साथ हवाई जहाज की तरह यात्रियों के खाने के लिए ट्रे लगाए गए हैं। यात्रा के दौरान रेलयात्री के ऑर्डर पर उनको हल्का भोजन मुहैया करवाया जा सकता है। इसी साल अप्रैल में शीशे के गुंबद वाले इन कोचों को पूरे मार्ग का सफर तय करने के बाद बडगाम में छोड़ दिया गया। इन्हें मई में परिचालन में शामिल करने की उम्मीद की जा रही थी, जिससे पर्यटकों को कश्मीर की वादियों के मनोरम नजारे का लुत्फ उठाने का मौका मिलता, लेकिन घाटी में हालात सामान्य न होने की वजग से ऐसा नहीं हो पाया।
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रेलमंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मौजूदा हालात विस्टाडोम कोच को सेवा में लाने के लिए ठीक नहीं है। हालात में सुधार होने पर भी इसका परिचालन शुरू होगा। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लिए विस्टाडोम कोच का इस्तेमाल पहली बार पिछले साल अप्रैल में विशाखापत्तन से किरनदुल में अराकू घाटी के लिए शुरू किया गया था। सके बाद दादर और मडगांव के बीच मुंबई-गोवा रूट पर पिछले साल सितंबर में जनशताब्दी में विस्टाडोम कोच का इस्तेमाल किया गया।