मोदी पैकेज को गरीबों तक पहुंचाने में दक्षिण भारत के राज्यों ने मारी बाजी इसमें एक बदलाव यह है कि दो महीने के लिए खाद्यान्नों के वित्तीय बोझ को वहन करने की सरकार की पेशकश को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 या राज्य सरकार की योजनाओं के तहत कवर नहीं किया गया है। इस योजना की घोषणा करते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि उनकी संख्या लगभग आठ करोड़ होने का अनुमान है।
घोषणा के मुताबिक राशन कार्ड न रखने वाले प्रवासियों को मई और जून में प्रति परिवार 5 किलोग्राम गेहूं और चावल और प्रत्येक परिवार को 1 किलोग्राम दाल मिलेगी, जिसकी लागत लगभग 3,500 करोड़ रुपये है। यह योजना बुधवार को घोषित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का हिस्सा है, जिसमें COVID-19 संकट से निपटने के लिए मार्च के अंतिम सप्ताह में लॉकडाउन की घोषणा के बाद केंद्रीय खाद्य मंत्रालय, राशन कार्ड के बिना राज्यों को अतिरिक्त खाद्यान्न की पेशकश कर रहा है।
इससे पहले बीते 7 अप्रैल को एक अन्य घोषणा में केंद्र ने कहा था कि राज्य भारतीय खाद्य निगम के खुले बाजार में बिक्री के माध्यम से गैर-राशन कार्ड धारकों के लिए अतिरिक्त खाद्यान्न का लाभ उठा सकते हैं।
इसके अलावा अप्रैल के तीसरे सप्ताह में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्यों को मनरेगा के लिए मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही की आवश्यक धनराशि जारी की थी, जबकि गुरुवार को प्रवासी मजदूरों के लिए राहत का दूसरा भाग घोषित किया गया। वैसे यह कोई अतिरिक्त लाभ नहीं है क्योंकि मजदूरों के पास हमेशा से इस योजना के तहत काम करने का विकल्प था। यह उनके गांवों में मांग पर आधारित है।
भारतीय वैज्ञानिकों की बड़ी कामयाबी, 500 रुपये में तुरंत रिपोर्ट देने वाली COVID-19 टेस्ट किट तैयार इस संबंध में मशहूर अर्थशास्त्री और विपक्षी नेता प्रवासी मजदूरों जैसे कमजोर वर्गों के लिए एकमुश्त नकद हस्तांतरण के लिए सरकार से कह रहे हैं। क्या गुरुवार की घोषणाओं से मजदूरों को शहर छोड़ने से रोकने में मदद मिलेगी, यह देखते हुए कि प्रवासी मजदूरों के पास मनरेगा और पीडीएस पहले से ही होने के बावजूद वो गांवों के लिए जा रहे थेे।
इससे पहले 26 मार्च को केंद्र ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के मौजूदा लाभार्थियों के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम मुफ्त भोजन और प्रति परिवार 1 किलो दाल देने की घोषणा की थी।
वित्त मंत्री ने कहा है, “हम यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ जुड़ रहे हैं कि उन्हें यह पता है कि प्रवासी कहां पर हैं। जिन लोगों के पास कोई कार्ड नहीं है, वे सरकार या गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे शिविरों में रह रहे हैं। इसलिए सभी राज्य सरकारों द्वारा हमें दिए गए एक मोटे आकलन के आधार पर, हमें लगता है कि लगभग आठ करोड़ प्रवासी हैं जो इस मुफ्त खाद्यान्न की आपूर्ति के माध्यम से लाभान्वित होंगे।”
भारतीय रेलवे ने बदल दिए टिकटों के कैंशलेशन-रिफंड के नियम, बीते 21 मार्च से लागू की गाइडलाइंस उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें इसके लिए “कार्यान्वयन एजेंसियां” होंगी, जो प्रवासी मजदूरों की पहचान करने और उन्हें भोजन वितरित करने जैसी दोनों बातों का ध्यान रखेंगी। सीतारमण ने ‘वन नेशन, वन राशन कार्ड’ परियोजना को लाने की भी घोषणा की। लेकिन इसस पर अभी भी काम चल रहा है और इसके अगले वर्ष मार्च से पहले एक राष्ट्रव्यापी एकीकरण की संभावना नहीं है। जबकि केंद्र को उम्मीद थी कि वह इस साल 1 जून तक परियोजना को लागू कर देगी। वैसे अब तक केवल 17 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ही इससे जुड़े हैं।
सीतारमण ने कहा, “अगस्त 2020 तक 23 राज्यों में 67 करोड़ लाभार्थियों या पीडीएस की 83% आबादी को वन नेशन वन राशन कार्ड द्वारा कवर किया जाएगा और हम मार्च 2021 तक राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी के 100 फीसदी कवरेज के बारे में सुनिश्चित हैं। सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश मार्च 2021 तक फुल ऑटोमेशन को पूरा कर लेंगे।”
वहीं, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने कहा, “राज्यों को प्रवासियों को मुफ्त में वितरित करने के लिए खाद्यान्न प्रदान किया जाएगा। लाभार्थियों की सूची को बाद में लिया जाएगा ताकि वितरण तुरंत शुरू हो।”