नई दिल्ली। न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) का मेंबर बनने के लिए भारत अब न्यूजीलैंड को मनाएगा। न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जॉन 24 से 27 अक्टूबर के बीच भारत का दौरा करेंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जॉन के बीच एनएसजी के मुद्दे पर बातचीत हो सकती है।
न्यूजीलैंड का मानना है कि परमाणु अप्रसार संधि पर साइन करने वाले देश ही एनएसजी के मेंबर हो सकते हैं और भारत ने इस संधि पर साइन नहीं किए हैं। हालांकि न्यूजीलैंड को अमरीका के सहयोगी देश के तौर पर देखा जाता है और अमरीका भारत की एंट्री के समर्थन में है। एनएसजी में भारत की एंट्री पर चीन जून में अड़ंगा लगा चुका है। नवंबर में विएना में एनएसजी की मीटिंग होने वाली है।
यहां विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप से पूछा गया था कि न्यूजीलैंड को इस बारे में कैसे मनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि जो बात हम दूसरे सदस्यों को बताते हैंए वह हम न्यूजीलैंड को भी बताएंगे कि क्लीन एनर्जी के लक्ष्यों के लिए यह जरूरी है। न्यूक्लियर एनर्जी हमारी ऊर्जा जरूरतों में अहम रोल निभाएगी। अप्रसार में भारत का बढिय़ा रेकॉर्ड रहा है। हमारा मानना है कि ग्रुप इस बात को समझेगा।
ये पांच देश हैं भारत की राह में रुकावट
वियना की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तुर्की, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रिया, आयरलैंड और दक्षिण अफ्रीका भारत की एनएसजी की दावेदारी का विरोध जता रहे हैं। इन देशों का मानना है कि भारत ने अभी तक परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए हैं।
अमरीका ने लिखा था भारत के लिए पत्र
गौरतलब है कि अमरीका ने ऑस्ट्रिया और न्यूजीलैंड से कहा है कि वह भारत की एनएसजी की राह न रोकें। विदेश मंत्री जॉन केरी ने पत्र लिखकर दोनों देशों से भारत के पक्ष में आपसी सहमति बनाने की अपील भी की थी।
48 सदस्यीय समूह है एनएसजी
इस समूह की स्थापना 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के जवाब में की गई थी। यह समूह किसी भी तरह के परमाणु सामग्री, उपकरणों और तकनीक पर नियंत्रण लगाता है। 2016 तक इसके 48 सदस्य देश हैं।
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