script#9baje9minute: पीएम मोदी ने बिजली सेक्टर के सामने रख दिया 9 मिनट का चैलेंज, कैसे होगा पूरा | PM Modi challenged Electricity sector for 9 minutes on April 5, How will it cope up | Patrika News
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#9baje9minute: पीएम मोदी ने बिजली सेक्टर के सामने रख दिया 9 मिनट का चैलेंज, कैसे होगा पूरा

आसान नहीं होगा बिजली क्षेत्र के इंजीनियरों के लिए इस चुनौती से निपटना।
बिजली की मांग-आपूर्ति, सप्लाई को मैनेज करना है एसएलडीसी का काम।
5 अप्रैल रात 9.10 बजे का वक्त असली चुनौती भरा, क्योंकि अचानक बढ़ेगी मांग।

नई दिल्लीApr 04, 2020 / 11:36 am

अमित कुमार बाजपेयी

बिजली सप्लाई

बिजली सप्लाई

नई दिल्ली। सोचिए क्या होगा जब समूचे भारत के 130 करोड़ लोग एक साथ अपने घर की बिजली बंद कर देंगे? कोरोना वायरस केे खिलाफ लड़ाई में आगामी 5 अप्रैल को पूरे देश से एकजुटता का आह्वान करते हुए पीएम मोदी ने रात नौ बजे नौ मिनट के लिए रोशनी बंद करने के लिए कहा है। लेकिन पीएम मोदी का यह आह्वान बिजली क्षेत्र के इंजीनियरों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है और अब वो इससे कैसे निपटेंगे, इसके उपाय तलाशने में जुट गए हैं।
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विद्युत विभाग के एक उच्च पदाधिकारी की मानें तो पीएम मोदी की घोषणा कुछ ऐसी है जैसे कि हम तेज चलती कार में अचानक तेजी से ब्रेक लगा दें। जब ऐसा होगा तब कार की प्रतिक्रिया क्या होगी के बारे में अनुमान लगा पाना बहुत मुश्किल काम है।
विद्युत क्षेत्र के अधिकारियों के मुताबिक उनके पास इस काम की योजना बनाने के लिए दो दिनों का वक्त है। इस संबंध में एक उच्चाधिकारी कहते हैं कि यह एक बड़ी और अभूतपूर्व चुनौती है। हालांकि वह इस चुनौती को स्वीकारते हुए इसे संभव करार देते हैं।
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हालांकि इन बातों से आपको यह जरूर लग रहा होगा कि नौ मिनट के लिए बिजली बंद करना भला कौन सा मुश्किल काम है, बटन दबाया और बिजली बंद। लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है। इसके लिए आपको यह जानना बहुत जरूरी है कि बिजली क्षेत्र कैसे काम करता है, बिजली सप्लाई कैसे होती है, कैसे विद्युत उत्पादन होता है और भी बहुत कुछ।
बड़ा सवाल

आपके घरों तक बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए टाटा पावर और नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) जैसी कंपनियां विद्युत उत्पादन का कार्य करती हैं जबकि हर राज्य में विद्युत वितरण के लिए अलग-अलग कंपनियां हैं। लेकिन इन सबके अलावा स्टेट लोड डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर (एसएलडीसी) की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है जो बिजली की मांग के मुताबिक आपूर्ति सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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एसएलडीसी की भूमिका को एयर ट्रैफिक कंट्रोलर (एटीसी) की तरह माना जा सकता है जो विमान और हवाई अड्डे के बीच संतुलन बनाने के साथ ही बेरोक-टोक आवाजाही को सुनिश्चित करता है। एटीसी के बगैर सोचिए कब-किस विमान को उतरना है और उड़ना है, किस हवाई पट्टी से जाना है या पर उतरना है, तय हो सकेगा।
एसएलडीसी बिजली उत्पादकों और वितरकों के बीच यह समन्वय करता है कि ग्रिड में कितनी बिजली की आपूर्ति की जाए। एसएलडीसी हर दिन (24 घंटे) को 15 मिनट के 96 टाइम ब्लॉक में बांटता है और हर राज्य में हर ब्लॉक के लिए मांग और आपूर्ति का शेड्यूल तैयार करता है।
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विशेषज्ञों की मानें तो यह बेहद ही हाई लेवल का ऑटोमैटिक और साइंटिफिक प्रॉसेस है। एसएलडीसी पॉवर ग्रिड लाइनों में चलने वाली बिजली की फ्रीक्वेंसी को 48.5 से 51.5 हर्ट्स के बीच रखना सुनिश्चित करता है। अगर यह फ्रीक्वेंसी बहुत ज्यादा हो जाएगी यानी आपूर्ति ज्यादा हो, या फिर बहुत कम फ्रीक्वेंसी यानी आपूर्ति बेहद कम हो, तो बिजली की लाइनों में आउटेज हो सकता है। ऐसा ही एक उदाहरण वर्ष 2012 में हुए ब्लैकआउट के दौरान हुआ था, दुनिया में सबसे बड़े इस ब्लैकआउट के दौरान अचानक मांग बढ़ने से ट्रिपिंग हुई और तकरीबन 60 करोड़ भारतवासियों की बिजली कट गई थी।
कैसे होगा आपूर्ति पर नियंत्रण

अगर बात करें आगामी पांच अप्रैल की तो असल खतरा मांग के बजाए आपूर्ति बढ़ाने और फ्रीक्वेंसी को बाधित करने का है। क्योंकि जब सारे हिंदुस्तानी एक साथ रात नौ बजे घर की बिजली बंद कर देंगे, तो लाइन में आउटेज हो सकता है और इससे भारी अंधकार पैदा हो सकता है। हालांकि वरिष्ठ इंजीनियर इस बात के लिए आश्वस्त करते हैं कि उनके पास क्योंकि योजना बनाने का वक्त है, इसलिए इस विकट स्थिति को संभाला जा सकता है। इन हालात में सबसे जरूरी काम आपूर्ति का प्रबंधन यानी सप्लाई मैनेजमेंट करना है।
कैसे होता है बिजली का उत्पादन
भारत में बिजली का उत्पादन कई तरीकों से होता है। इनमें थर्मल, हाइडल, गैस, विंड और सोलर प्रोडक्शन शामिल है। अब जब मामला सप्लाई मैनेजमेंट का है तो फिर पहले से तय करना पड़ेगा कि इनमें से उत्पादन के किन स्रोतों को एडजस्ट किया जाए।
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इस संबंध में एक इंजीनियर ने बताया कि सोलर एनर्जी रात में उत्पन्न नहीं होती है। विंड एनर्जी तो हमेशा चलने वाली है, इसलिए इसे नहीं रोका जा सकता। हालांकि हाइडल और गैस प्लांट को पूरी तरह से बंद करना संभव है और इसे फिर से शुरू करना भी कोई बहुत असंभव काम नहीं है। लेकिन चुनौती थर्मल प्लांट के साथ आती है क्योंकि इसे बंद करने के बाद फिर से चालू करने में कई घंटे लग सकते हैं।
फिलहा? कोरोना वायरस ? के कारण थर्मल प्लांट्स में भी कम क्षमता पर काम चल रहा है। पांच अप्रैल को एक ही वक्त पर पूरी सप्लाई को कम करने के लिए इन्हें पूरी तरह बंद नहीं किया जा सकता।
लेकिन जैसे ही पीएम ने शुक्रवार सुबह, रविवार रात नौ बजे के उन नौ मिनटों के लिए घोषणा की, बिजली उत्पादकों, डिस्कॉम्स और एसएलडीसी ने इस पर कार्ययोजना बनाना शुरू कर दिया है।

नौ मिनटों की चुनौती
दरअसल यह नौ मिनट बड़ी चुनौती इसलिए हैं क्योंकि यह 15 मिनट के ब्लॉक के मुताबिक नहीं हैं और आज के एडवांस्ड सिस्टम को इतने वक्त के लिए री-कंफिगर नहीं किया जा सकता है।
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एक इंजीनियर ने इस संबंध में बताया कि 5 अप्रैल को केवल रोशनी बंद होगी, लोग पंखे-एयर कंडीशनर नहीं बंद करेंगे। इसके अलावा स्ट्रीट लाइट और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर रहने वाले लोग भी होंगे, जहां बिजली चलती रहेगी। वहीं, कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो बिजली बंद करना भूल जाएंगे। इस लिहाज से उम्मीद लगाई जा रही है कि बहुत ज्यादा अंतर बिजली की जरूरत का तकरीबन 9-10 फीसदी ही होगा। जो कि बहुत ज्यादा नहीं है।
वहीं, एक सीनियर एग्जीक्यूटिव के मुताबिक एक ही वक्त में बिजली की आपूर्ति को समायोजित करना आसान नहीं होगा और चुनौती भरा भी है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती विशेषरूप से वो 10वां मिनट होगा जब लोग एक बार फिर से रोशनी चालू करेंगे। क्योंकि अचानक मांग में तेजी आ जाएगी और क्या सप्लाई पूरी हो सकेगी? यह जानना काफी दिलचस्प होगा कि इसे इंजीनियर कैसे मैनेज करते हैं।

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