इस दौरान कोर्ट ने 2 अगस्त से राम मंदिर मामले ( Ayodhya Ram Mandir Case ) पर खुली कोर्ट में सुनवाई होने की बात कही है। जबकि रोजाना सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट 2 अगस्त को फैसला देगा। मामले में मध्यस्थता की प्रक्रिया 31 जुलाई तक चलेगी।
दरअसल, प्रधान न्यायधीश रंजन गोगोई ( chief justice rajan gogoi ) की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने 11 जुलाई को इस अहम मुद्दे पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर अदालत मंदिर-मस्जिद विवाद में मध्यस्थता कार्यवाही पूरी करने का निर्णय लेती है तो 25 जुलाई से हर रोज इस मामले में सुनवाई की शुरुआत की जा सकती है।
सीजेआई ( Chief Justice Rajan Gogoi ) की अध्यक्षता वाली बेंच ने तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) के सेवानिवृत जज एफएमआई कलीफुल्ला से इस मामले में अब तक की प्रगति ( Ram Janmabhoomi Babri Masjid land dispute ) की 18 जुलाई तक जानकारी मांगी थी।
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आपको बता दें कि सीजेआई ( Chief Justice Rajan Gogoi ) की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस एस एस बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर को रखा गया है।
इससे पहले 11 जुलाई को हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्षों में से एक द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई करते हुए SC ने कहा था कि अयोध्या विवाद ( Ram Janmabhoomi Babri Masjid land dispute ) में अगर मध्यस्थता विफल हो जाती है, तो सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) इस मामले पर प्रतिदिन सुनवाई शुरू कर सकता है।
मध्यस्थता प्रक्रिया में कोई प्रगति नहीं होने की बात कहते हुए मामले ( Ram Janmabhoomi Babri Masjid land dispute ) को सूचीबद्ध करने के लिए गोपाल सिंह विशारद ने मंगलवार को शीर्ष अदालत में अर्जी दी।
उनके वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस नरसिम्हा ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ( Chief Justice Rajan Gogoi ), न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया।
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हिंदू दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने कहा कि यह विवाद पिछले 69 सालों से अटका पड़ा है और मामले को हल करने के लिए शुरू की गई मध्यस्थता का रुख सकारात्मक नजर नहीं आ रहा है।
वकील ने कहा कि 11 संयुक्त सत्र आयोजित किए जा चुके हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है। यह विवाद ( Ram Janmabhoomi Babri Masjid land dispute ) मध्यस्थता के जरिए सुलझाना मुश्किल है।
वहीं, मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि यह आवेदन मध्यस्थता की प्रक्रिया को खत्म करने का एक प्रयास है और हिंदू पक्षकारों द्वारा अयोध्या विवाद ( Ram Janmabhoomi Babri Masjid land dispute ) को हल करने के लिए गठित मध्यस्थों की समिति की कार्यप्रणाली की आलोचना उचित नहीं है।
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न्यायमूर्ति गोगोई ( Chief Justice Rajan Gogoi ) की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ ने मध्यस्थता प्रक्रिया की प्रगति के बारे में समिति से रिपोर्ट मांगी है। अगर मध्यस्थता में कोई प्रगति नहीं देखी जाती है, तो 25 जुलाई से प्रतिदिन की सुनवाई शुरू हो सकती है।
नरसिम्हा ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) द्वारा शुरू मध्यस्थता प्रक्रिया के पहले दौर में खास प्रगति नहीं हुई है। न्यायालय ने उन्हें आवेदन दाखिल करने की अनुमति दी और कहा कि इसे सूचीबद्ध करने के लिए देखा जाएगा।
समय बढ़ाने की मांग की थी
10 मई को सर्वोच्च न्यायालय ( Supreme Court ) ने मध्यस्थता ( Ram Janmabhoomi Babri Masjid land dispute ) कमेटी के कार्यकाल की समयसीमा को 15 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया था।
तब समिति के अध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला ने मध्यस्थता में प्रगति का संकेत दिया था और कार्य को पूरा करने के लिए समय बढ़ाने की मांग की थी।
कलीफुल्ला समिति में श्री श्री रविशंकर सदस्य
न्यायालय ने कहा था कि जरूरत पड़ने पर मध्यस्थता प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है। अयोध्या मामले ( Ram Janmabhoomi Babri Masjid land dispute ) में मुस्लिम पक्षकार हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी ने कहा, “यह मामला बहुत पुराना है और इस मुद्दे को दो महीने में हल नहीं किया जा सकता है।” कलीफुल्ला समिति में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू इसके अन्य सदस्य हैं।