रतन लाल का मासूम बेटा विरेल मिट्टी से घरौंदा बनाते हुए
नई दिल्ली। कहते हैं पिता हैं तो बाजार का हर खिलौना अपना है, पिता हैं तो हर सपना अपना है। बच्चे भले ही जीवन में पहला शब्द ‘मां’ का लेते हों, लेकिन ता उम्र वो किसी को आदर्श मानते हैं तो वो होता है पिता।
जब सिर से पिता का साया उठ जाता है तो जीवन का संघर्ष कई गुना बढ़ जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ है हेड कॉन्सटेबल रतन लाल के बच्चों के साथ। जिनके पिता की दिल्ली में हुई हिंसा के दौरान सोमवार को मौत हो गई थी।
रतन लाल ( Ratan Lal ) अपने पीछे अपने तीन बच्चों को छोड़ गए हैं। दो बेटियां और एक मासूम बेटा भी है। जिसे अब तक पता ही नहीं है जिन्हें वो पिता कहता है वो अब उससे बहुत दूर जा चुके हैं।
विरेल इस बात से बेखबर है कि उसके आस-पास आखिर इतनी भीड़ क्यों है? क्यों घर में इतने लोग एकत्र हुए हैं उसे बस अपने खेल में मगन रहना है। शायद अब भी उसके मन में यही है कि पापा काम पर गए हैं ड्यूटी पूरी होने के बाद वापस आ जाएंगे। तब वो एक बार फिर पिता की गोद में चढ़कर अपनी इच्छाएं पूरी करवा लेगा।
लेकिन विरेल को नहीं पता है कि जिस पिता की गोद में चढ़कर वो दुनिया को देख रहा था वो अब इस दुनिया में ही नहीं रहे।