बता दें, कावेरी नदी के पानी को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवाद है। इस संबंध में 2016 में एक नागरिक समूह ने याचिका दायर की थी। इसमें कोर्ट से बेंगलुरु और आसपास के जिलों में रहने वाले लोगों को पीने के पानी की पर्याप्त आपूर्ति के लिए दखल देने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि बेंगलुरु के लोगों को पर्याप्त पीने के पानी की जरूरत है और उनके जीवन जीने के अधिकार की सर्वोच्च अदालत को सुरक्षा करनी चाहिए। इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल विवाद पर जल्द फैसला देने के संकेत दिए।
पुराना है मामला उल्लेखनीय है कि पानी के बंटवारे को लेकर 2007 के कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल (सीडब्ल्यूडीटी) के फैसले के खिलाफ कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बैंच ने सुनवाई के बाद 20 सितंबर 2017 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। खंडपीठ ने टिप्पणी की थी कि पिछले दो दशकों तक इस मामले में काफी भ्रम की स्थिति रही है।
जल-विवादों पर बनेगा कानून गौर हो, केंद्र सरकार देश के विभिन्न राज्यों के बीच बढ़ते जल विवादों को देखते हुए अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक को संसद में फिर पेश करेगी। इसमें अधिकरणों के अध्यक्षों, उपाध्यक्षों की आयु और निर्णय देने की समय सीमा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। विधेयक को जल्द ही कैबिनेट में मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा।