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जाति पर बहस: 18 वर्षीय छात्रा का जवाब- मैं आपकी रसोई में नहीं घुसना चाहती मिस्टर थरूर

तेजस्विनी ताभाने ने थरूर के लेख पर आड़े हाथों लिया है। तेजस्विनी ने थरूर की प्रतिस्थापनाओं को खारिज करते हुए जवाबी लेख लिखा।

Nov 07, 2017 / 09:37 am

shachindra श्रीवास्तव

student replies - I dont want to enter ur kitchen Mr Tharoor

caste re

नई दिल्ली। दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज की 18 वर्षीय छात्रा तेजस्विनी ताभाने ने पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर को उनके जाति पर लिखे एक लेख पर आड़े हाथों लिया है। तेजस्विनी ने थरूर की प्रतिस्थापनाओं को खारिज करते हुए जवाबी लेख लिखा। इस पर थरूर ने अपनी आलोचना को स्वीकार करते हुए लेख की तारीफ की और इसे बहस को आगे बढ़ाने वाला बताया।
थाभाने ने सवाल खड़ा करते हुए लिखा है- जहां तक मुझे लगता है कि थरूर के लिए दलित समुदाय की प्रगति का ***** ऊंची जातियों की रसोई में प्रवेश है। क्या दलित मंदिरों में पुजारी के तौर पर प्रवेश पाने लायक नहीं है? या वे अकादमिक जगत में प्रवेश की योग्यता नहीं रखते? क्या उनमें नौकरशाही में प्रवेश की समझदारी नहीं है? लेख के अंत में उन्होंने लिखा है- मिस्टर थरूर मैं आपकी रसोई में प्रवेश नहीं करना चाहती।
तीन साल पहले लिखा था लेख
पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने भारत में जाति क्यों खत्म नहीं होती शीर्षक से करीब तीन साल पहले लेख लिखा था। इसमें उन्होंने एक अध्ययन के हवाले से कहा था कि 27 प्रतिशत भारतीय मौजूदा दौर में भी अस्पृश्यता की तरफदारी करते हैं। लेख में थरूर ने जाति पर ध्यान न देने के विचार के बारे में बात की थी। यह लेख 9 दिसंबर 2014 को एक अमरीकी वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ था।
वर्जित है रसोई में दलितों का प्रवेश
थरूर ने अपने लेख में कहा था कि दलितों का रसोई में प्रवेश वर्जित हैं। यह इस हद तक है कि कई घरों में दलितों के लिए अलग बर्तनों का उपयोग भी किया जाता है। उन्होंने लेख में उम्मीद जताई थी कि अगला सर्वे होगा, तब तक शायद और ज्यादा लोग दलितों के रसोई में प्रवेश करने पर सहज हो जाएंगे।
लेख पर प्रतिक्रिया देना है जरूरी
थरूर के लेख पर जवाबी हमला करते हुए थाभाने ने लिखा- मुझे लेख में कई चीजें आपत्तिजनक लगीं, जिनके बारे में बोला जाना चाहिए था, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। मुझे लगता है इस पर बात करना जरूरी है। राउंडटेबल नामक वेबसाइट पर थाभाने ने लिखा- मुझे लगा इस लेख में इस सवाल का जवाब मिलेगा कि देश से जाति क्यों खत्म नहीं होती, लेकिन यह लेख निराश करता है।
अन्य जातियों के अनादर से उपजता है ब्राह्मण होने का गर्व
उन्होंने आगे लिखा- थरूर यहां यह भूल गए कि ब्राह्मण जाति गर्व करना अन्य जातियों के अनादर से उपजता है। ब्राह्मणों का अपनी जाति पर गर्व और दलितों का अपनी जाति पर गर्व करने की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि दोनों पहचान के स्तर पर अलग धरातल पर हैं। ब्राह्मण जहां शीर्ष पर हैं, वहीं दलित तलछट में हैं।
प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष फायदे हैं जाति के
ताभाने ने लिखा है- अगर थरूर अपनी जातिगत पहचान से अनजान है, इसका अर्थ यह नहीं है कि वे जातिहीन हैं। कोई भी व्यक्ति जो नायर जाति समूह (शशि थरूर नायर जाति में पैदा हुए हैं) का सदस्य है, उसे किसी भी रूप में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी जाति का फायदा मिलता है। जाने या अनजाने वह इस लाभ से आगे भी बढ़ता है।

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