पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने भारत में जाति क्यों खत्म नहीं होती शीर्षक से करीब तीन साल पहले लेख लिखा था। इसमें उन्होंने एक अध्ययन के हवाले से कहा था कि 27 प्रतिशत भारतीय मौजूदा दौर में भी अस्पृश्यता की तरफदारी करते हैं। लेख में थरूर ने जाति पर ध्यान न देने के विचार के बारे में बात की थी। यह लेख 9 दिसंबर 2014 को एक अमरीकी वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ था।
थरूर ने अपने लेख में कहा था कि दलितों का रसोई में प्रवेश वर्जित हैं। यह इस हद तक है कि कई घरों में दलितों के लिए अलग बर्तनों का उपयोग भी किया जाता है। उन्होंने लेख में उम्मीद जताई थी कि अगला सर्वे होगा, तब तक शायद और ज्यादा लोग दलितों के रसोई में प्रवेश करने पर सहज हो जाएंगे।
थरूर के लेख पर जवाबी हमला करते हुए थाभाने ने लिखा- मुझे लेख में कई चीजें आपत्तिजनक लगीं, जिनके बारे में बोला जाना चाहिए था, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। मुझे लगता है इस पर बात करना जरूरी है। राउंडटेबल नामक वेबसाइट पर थाभाने ने लिखा- मुझे लगा इस लेख में इस सवाल का जवाब मिलेगा कि देश से जाति क्यों खत्म नहीं होती, लेकिन यह लेख निराश करता है।
उन्होंने आगे लिखा- थरूर यहां यह भूल गए कि ब्राह्मण जाति गर्व करना अन्य जातियों के अनादर से उपजता है। ब्राह्मणों का अपनी जाति पर गर्व और दलितों का अपनी जाति पर गर्व करने की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि दोनों पहचान के स्तर पर अलग धरातल पर हैं। ब्राह्मण जहां शीर्ष पर हैं, वहीं दलित तलछट में हैं।
ताभाने ने लिखा है- अगर थरूर अपनी जातिगत पहचान से अनजान है, इसका अर्थ यह नहीं है कि वे जातिहीन हैं। कोई भी व्यक्ति जो नायर जाति समूह (शशि थरूर नायर जाति में पैदा हुए हैं) का सदस्य है, उसे किसी भी रूप में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी जाति का फायदा मिलता है। जाने या अनजाने वह इस लाभ से आगे भी बढ़ता है।