दरअसल, लिव इन में वही लोग रहते हैं जो शादीशुदा जिंदगी जीना तो चाहते हैं, लेकिन शादी वाली जिम्मेदारी उठाने को राजी नहीं होते। बता दें कि लिव इन रिलेशनशिप पूरी तरह से दो लोगों की आपसी सहमति पर आधारित होता है जिसमें कोई सामाजिक और कानूनी दबाव नहीं होता है। अभी हाल ही में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर एक नई कवायद शुरु हो गई है।
लिव इन रिलेशनशिप के बहाने मां को दिया आसरा, फिर 12 साल की बेटी के साथ 2 साल तक दरिंदगी लिव इन रिलेशनशिप को लेकर सवाल उठा है कि अगर किसी वजह से रिलेशनशिप में दरार आ जाए और लड़का-लड़की अलग हो जाएं तो या लड़का शादी के लिए मुकर जाए, तो क्या वो लड़की को हर्जाना या गुजारा-भत्ता देगा?
इस मामले पर हाल ही में
सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से सुझाव भी मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से सुझाव मांगा है कि , अगर लिव इन रिलेशनशिप टूट जाता है तो क्या लड़के को अपनी नैतिक जिम्मेदारी के तहत लड़की को हर्जाना देना चाहिए या नहीं?
दरअसल, कर्नाटक हाई कोर्ट के एक मामले पर सुनवाई करने के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा ही मामला आया है। कर्नाटक के एक शख्स आलोक कुमार पर उनकी गर्लफ्रेंड ने रेप का आरोप लगाया है। बताया जा रहा है कि आलोक कुमार गर्लफ्रेंड के साथ पिछले छह साल से लिव इन रिलेशनशिप रहते थे। लेकिन बाद में आलोक ने शादी के लिए मना कर दिया, जिसके बाद से उनकी गर्लफ्रेंड ने कर्नाटक हाई कोर्ट में आलोक पर जबरन शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगा दिया और केस भी दर्ज किया। केस के बाद आलोक हाई-कोर्ट पहुंचे लेकिन वहां उनकी याचिका खारिज हो गई। हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद आलोक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। एससी में भी सुनवाई के दौरान रेप और दूसरे आपराधिक मामलों को तो नकार दिया लेकिन नैतिक जिम्मेदारी के मामले में एससी ने अटॉर्नी जनरल से सलाह मांगी है। कोर्ट ने कहा कि क्या लिव इन रिलेशनशिप को भी शादी की ही तरह देखा जा सकता है और अगर लड़का लिव इन रिलेशनशिप तोड़ दे तो उसे लड़की को हर्जाना देना पड़ेगा या नहीं?
इस मामले पर कुछ आम लोगों से भी पूछा गया तो कई लोगों ने अपनी राय दी। कुछ लोगों ने नैतिक जिम्मेदारी का समर्थन किया तो कई इसके विपक्ष में भी थे। लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात ये थी कि 90 फीसदी महिलाएं गुजारा-भत्ता नहीं मिलने के पक्ष में थीं। एक लेडिज स्पेशल ग्रुप से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि रिश्तों को कभी भी पैसों से नहीं तोलना चाहिए। शहरों की अधिकत्तर लड़कियां आत्मनिर्भर होती हैं, तो ऐसे में गुजारा भत्ता देने का तो सवाल ही नहीं उठता है। हां, शादी से मुकरने के लिए सजा जरूर होनी चाहिए।
वहीं कुछ लोगों ने इसे नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए कहा कि लड़के की जिम्मेदारी तो बनती ही है। कुछ ने कहा कि हर्जाना तो बनता है क्योंकि हमारे समाज में ऐसे रिश्ते की स्वीकृति नहीं है।