इस बेंच शामिल एकमात्र महिला जज जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा, धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ कोर्ट को छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा, सती जैसी कुरीतियों की बात अलग है, लेकिन यह कोर्ट में नहीं तय होगा कि कौन सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं। उन्होंने कहा, यह मामला सिर्फ सबरीमला तक सीमित नहीं है। इसका दूसरे धर्मस्थलों पर भी प्रभाव होगा।
पांच सदस्यीय पीठ ने चार अलग-अलग फैसले लिखे है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से प्रतिबंधित करने की परिपाटी को जरूरी धार्मिक परंपरा नहीं मान सकते। जस्टिस नरीमन ने कहा, 10-50 वर्ष की महिलाओं को प्रतिबंधित करना अनुच्छेद 25 और 26 के खिलाफ है। इसलिए प्रतिबंधित करने वाले नियम को निरस्त किया जाता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, महिलाओं को पूजा से वंचित करने के लिए धर्म को ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।
राज्य सरकार के इस नियम के तहत थी रोक
दरअसल, केरल सार्वजनिक पूजा (प्रवेश का प्राधिकरण) 1965 के नियम 3 (बी) के तहत सबरीमाला मंदिर में विशेष उम्र की महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित था। सुप्रीम कोर्ट ने इस नियम को असंवैधानिक मानते हुए इस प्रावधान को खत्म करने का आदेश दिया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, प्रतिबंध के पीछे विचार यह रहा होगा कि महिलाओं के होने से ब्रह्मचर्य को परेशान करेगी। उन्होंने कहा यह महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी प्रवृति का प्रतीक है।
28 साल से चल रहा था महिलाओं का संघर्ष
मंदिर प्रबंधन ने यह बताया था रोक का कारण
कोर्ट ने यह फैसला इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन और अन्य की याचिकाओं पर सुनाया है। इससे पूर्व सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने कोर्ट को बताया था कि 10 से 50 वर्ष आयु तक की महिलाओं का प्रवेश इसलिए प्रतिबंधित है क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता बनाए नहीं रख सकतीं। मुद्दे पर केरल सरकार लगातार रुख बदलती रही है। अब तक केरल सरकार इस मुद्दे पर चार बार अपना रुख बदल चुकी है। 18 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने कहा था कि वह महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के पक्ष में है। इससे पहले सरकार ने प्रवेश पर रोक का समर्थन किया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार ने पूछा था कि आपका स्टैंड हर बार बदल क्यों जाता है।