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यह पहला मौका है जब चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की गैरमौजूदगी में पहली बार खुद की ताकत परखेंगे। हांलाकि अभी चिराग का भविष्य और पार्टी का भाजपा के साथ गठबंधन अधरझूल में है परन्तु राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव और कांग्रेस अभी से चिराग पासवान को अपने साथ जुड़ने का न्यौता दे रहे हैं।Kisan Andolan: देशभर में किसानों का हल्लाबोल आज, राजभवनों के बाहर करेंगे प्रदर्शन
यहां पर सबसे बड़ा प्रश्न यही उठता है कि चिराग पासवान में ऐसा क्या है जो बिहार की प्रमुख पार्टियां उन्हें अपने साथ लेना चाहती हैं। अगर हाल ही हुए लोकसभा चुनाव तथा बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखा जाए तो पता लगता है कि चिराग पासवान बिहार की राजनीति में इतने अधिक महत्वपूर्ण क्यों हो गए हैं।चिराग पासवान के नेतृत्व में लोक जनशक्ति पार्टी ने 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा था और अकेले अपने दम पर पार्टी को 26 लाख वोट (6 फीसदी वोट) दिलाए थे। यही नहीं उन्होंने कई सीटों पर नीतिश कुमार की पार्टी को कड़ी टक्कर भी दी। चिराग भीड़ जुटाने में सक्षम हैं और जनता भी उन्हें रामविलास पासवान के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखती है। तेजस्वी यादव तथा अन्य दूसरे नेता इस बात को समझते हैं और जानते हैं कि यदि पासवान को साथ जोड़ लिया जाए तो वे बिहार की राजनीति को अपनी इच्छा से चला सकेंगे।
वर्तमान में अधिकतर नेताओं का मानना है कि नीतिश कुमार का यह आखिरी कार्यकाल है। 2025 का विधानसभा चुनाव युवा नेताओं के दम पर लड़ा जाएगा और उन्हीं की बदौलत मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। देखा जाए तो वर्तमान में तेजस्वी यादव और चिराग पासवान दोनों ही दो अलग-अलग गुटों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि दोनों मिलकर एक हो जाए तो निकट भविष्य में उन्हें टक्कर देना मुश्किल होगा और वे सत्ता तक अपनी पहुंच बना पाएंगे।
चिराग पासवान का मानना है कि लोक जनशक्ति पार्टी में पड़ी फूट के पीछे नीतिश कुमार ही जिम्मेदार हैं। वहीं तेजस्वी भी लालू को चारा घोटाले में सजा मिलने के पीछे कहीं न कहीं नीतिश कुमार को जिम्मेदार मानते हैं। ऐसे में दोनों का एक ही कॉमन प्रतिद्वन्दी होने के कारण चिराग पासवान तथा तेजस्वी यादव एक हो सकते हैं।
चिराग पासवान का मानना है कि संकट के समय भाजपा ने उनकी अनदेखी की है। हालांकि वे खुद को मोदी सरकार का हनुमान कहते रहे हैं परन्तु अब इस मुद्दे पर उनका दुख खुल कर सामने आ रहा है। तेजस्वी यादव इसी बात का फायदा उठा कर उन्हें एनडीए से निकाल कर महागठबंधन में शामिल करना चाहते हैं। यदि ऐसा होता है तो यह एनडीए के बड़ा झटका होगा और आने वाले चुनावों पर इसका स्पष्ट असर देखा जा सकेगा।