आज लोकसभा में पेश होगा ओबीसी आरक्षण से जुड़ा बिल, राज्यों को वापस मिलेगा ये अधिकार
सामाजिक स्तर ऊंचा उठाने के लिए वैश्विक प्रयासइस संबंध में दुनिया भर में काफी प्रयास किए जा रहे हैं। विभिन्न देशों की सरकारें संवैधानिक सुधारों के द्वारा उनकी आदिवासियों की समस्याओं को दूर करने का प्रयास कर रही हैं। उनके लिए कई राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मंच तथा सलाहकार एजेंसियां स्थापित की गई हैं जहां वे अपनी बात कह सकते हैं, अपनी समस्या सुलझा सकते हैं।
देश में आज भी ऐसे बहुत से समुदाय है जो वनों तथा पर्वतों में रहते हुए आम जनजीवन से दूर अपना जीवन जी रहे हैं। समाज की मुख्यधारा से दूर होने के कारण वे प्राय: अत्यधिक सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन से पीड़ित हैं। संविधान में इन समुदायों को आदिवासी तथा जनजातीय मानते देते हुए उन्हें कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए देश की बाकी जनसंख्या के समान ही सभी संभव अवसर प्राप्त हो ताकि वे अपने जीवनस्तर को ऊंचा उठा सकें, तरक्की प्राप्त कर सकें।
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वर्ष 2011 में हुई जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 8.6 फीसदी हिस्सा आदिवासी समुदाय से मिलकर बना है। अधिकतर समुदाय ओड़िशा में हैं। देश में वर्तमान में लगभग 700 आदिवासी समूह तथा 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) हैं। इनमें भी गोंड समुदाय देश का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली तथा पुडुचेरी में कोई भी अधिसूचित जनजाति नहीं है।देश के संविधान में आदिवासी तथा जनजातीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रावधान किए गए हैं। संविधान की 5वीं और 6ठी अनुसूची में अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन तथा नियंत्रण की बात कही है। अनुच्छेद 342(1) में संबंधित राज्य अथवा केन्द्र शासित प्रदेश के संबंध में जनजातीय व आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। इसके अलावा अनुच्छेद 15 तथा 16 उनके साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव का निषेध करने तथा लोक नियोजन के मामलों में अवसर की समानता देने की बात कहते हैं। अनुच्छेद 46 के तहत अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को सुरक्षित किया गया है। अनुच्छेद 335 एवं 338ए के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना की गई है और अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के सरकारी नौकरी पाने के अधिकार को सुरक्षित किया गया है।
नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 उनके साथ होने वाली अस्पृश्यता के विरुद्ध अधिकारों की रक्षा करता है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों की रोकथाम करता है। अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 अनुसूचित जनजातियों और अन्य वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देता है। इसी प्रकार पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 में संविधान के भाग IX के तहत पंचायतों को अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार करने का अधिकार दिया गया है।