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मध्य-पूर्व में बनता नया सैनिक गठजोड़, अमरीका के जाने के बाद खाली जगह भरने की होड़

मध्य-पूर्व के कई देशों में हो चुका है तख्तापलट।
अमरीका ने अफगानिस्तान से सेना को वापस बुलाने का लिया है निर्णय।

नई दिल्लीMay 02, 2019 / 11:01 pm

Anil Kumar

अमरीकी सेना

मध्य-पूर्व में बनता नया सैनिक गठजोड़, अमरीका के जाने के बाद खाली जगह भरने की होड़

नई दिल्ली। अमरीका एक शक्तिशाली राष्ट्र है, जिसका राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव पूरी दुनिया में पड़ता है। पूरे विश्व में अमरीका का दबदबा है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश और मध्य-पूर्व में अमरीका का खासा प्रभाव रहा है। सामरिक दृष्टि से देखें तो जिन भी देशों में गृह युद्ध जैसे हालात उत्पन्न हुए हैं वहां पर सैन्य ताकत के बल पर अमरीका ने नियंत्रण करने की कोशिश की है। चाहे वह ईरान , इराक, सीरिया, अफगानिस्तान , लीबिया , सुडान, यमन, वेनेजुएला जैसे देश रहे हों। हालांकि अब धीरे-धीरे समय बदलता जा रहा है और जैसे-जैसे अमरीकी सेना छोड़ कर जा रहे हैं, वैसे-वैसे पूरी दुनिया में एक नया समीकरण बनता जा रहा है। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि मध्य-पूर्व के देशों में तेजी से सियासी समीकरण बदल रहे हैं। लिहाजा जिस आतंकवादी घटनाओं को रोकने और गृहयुद्ध को खत्म करने को लेकर अमरीका दखल देता रहा है उसमें बदलाव देखने को मिल रहा है। एक नया सैन्य समीकरण देखने को मिल रहा है। 1950 और 1960 के दशक की बात करें तो अरब देशों में सैन्य सरकारें चरमराने लगी और फिर एक नई सियासत की शुरुआत हुई।

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अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी

वर्षों तक अफगानिस्तान में तालिबान और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ लड़ाई छेड़ने के बाद जब मन चाही सफलता हाथ नहीं लगी और अमरीकी लोगों ने सरकार के फैसले का विरोध किया तो सरकार को झूकना पड़ा। आखिरकार सरकार ने फैसला करते हुए अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों के वापसी की घोषणा कर दी और इसे शांति बहाली के लिए जरूरी बताया।

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तख्तापलट की कोशिश

मध्य पूर्व के कई देश हैं जहां पर हाल के वर्षों में तख्तापलट की कोशिश की गई और कई जगह पर सफल भी रहा, तो वर्षों पहले से भी सैन्य ताकत के बल पर सत्ता पर काबिज होत रहे हैं। इन देशों में अमरीकी सैनिकों की वापसी या फिर अमरीकी समर्थन के बाद से तख्तापलट की कोशिश की गई है। इतना ही नहीं कई देशों में तख्तापलट के बाद वर्षों से सत्ता पर काबिज रहने वाले सैन्य अधिकारियों के खिलाफ भी लोगों ने आवाज बुलंद की और विरोध प्रदर्शन किए। जैसे अल्जीरिया, सुडा़न आदि देश में लोगों ने अब्देलअजीज बुटफ्लिका और उमर उल-बशीर को सत्ता से हटने के लिए मजबूर कर दिया। जबकि लीबिया में सैन्य अधिकारी खलीफा हफ्तार ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और तख्तापलट के लिए राजधानी त्रिपोली में कब्जा करने को संघर्ष जारी है। लीबिया में अमरीका खलीफा हफ्तार को सपोर्ट कर रहा है। अरब देशों में अमरीका दशकों तक सैन्य शासन के पक्ष में रहा है।

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बाकी देशों में मची होड़

मध्य-पूर्व के देशों से अमरीकी सेना की वापसी या हस्तक्षेप कम होने के बाद से बाकी के बड़े देशों में एक होड़ मच गई है। विश्व स्तर पर अपनी धाक जमाने और आर्थिक ताकत के साथ-साथ राजनैतिक हैसियत को बढ़ाने के लिए चीन, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देश एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। लीबिया, सीरिया, अफगानिस्तान आदि देशों में चीन का दखल बढ़ता जा रहा है। इसतरह से गल्फ देशों मसलन ईरान, इराक, ओमान, जोर्डन, कतर, यमन, लेबनान आदि देशों में अमरीका की पकड़ ढिली पड़ती जा रही है और बाकी शक्तिशाली देश वहां पर अपनी पकड़ मजबूत करने को आर्थिक घेराबंदी करते हुए लगातार कोशिश में है।

 

 

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