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‘मैं सुंदर हूं, लेकिन खतरनाक भी हूं’ की गूंज है इस इलाके में, मनचले दूर से कर लेते हैं तौबा

“मेरी आवाज बुलंद है मैं अपनी आवाज का इस्तेमाल कर सकती हूं, मैं कमजोर नहीं हूं

Mar 05, 2018 / 09:04 am

Priya Singh

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नई दिल्ली। दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका के मलावी के एक स्कूल से कुछ लड़कियों की एक ही सुर में बुलंद आवाजें आ रही थीं “मैं मजबूत हूं”, “मेरी आवाज बुलंद है मैं अपनी आवाज का इस्तेमाल कर सकती हूं, मैं कमजोर नहीं हूं, मैं खुद को बचाने के लिए अपने शरीर का उपयोग कर सकती हूं”। यहां कोई नाटक मंडली नहीं बैठी है यहां इंडिगो वर्दी पहने लगभग 50 स्कूली लड़कियों के समूह को तैयार किया जा रहा है यौन उत्पीड़न से लड़ने के लिए। बार-बार उनको उनकी आवाज बुलंद करने को कहा जा रहा है बोलो- “मैं सुंदर हूं, लेकिन मैं खतरनाक भी हूं!” 11 से 16 साल की उम्र की ये लड़कियां अब अपनी चुप्पी तोड़कर अपने ऊपर हो रहे अत्याचार और उत्पीड़न के खिलाफ मोर्चा निकालने को उत्सुक हैं, और हों भी क्यूं ना एक स्त्री जात कब तक ये सब सहेगी?
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कई लोगों के मुहं से मैंने सुना है सिर्फ छेड़ा ही तो है, बलात्कार तो नहीं किया जाने दो इससे कुछ नहीं मिलेगा, ऐसी टिप्पणियां आपने भी सुनी होंगी, यौन उत्पीड़न कोई मामूली अपराध नहीं हैं जो सहता है उसे ही इसका दर्द महसूस होता है। जो पहल मलावी के इस स्कूल ने शुरू की है इसमें सिर्फ छात्राएं ही नहीं बल्कि छात्रों को भी सिखाया जाता है कि ये कितना बड़ा अपराध है और उन्हें भी यौन उत्पीड़न से लड़ने को शिक्षित किया जाता है। यहां छात्रों को सिखाया जता है कि अपनी भावनाएं किसी को कैसे व्यक्त करते हैं? अपना गुस्सा किसी लड़की पर उतरना कितना घातक है इसी संदर्भ में और भी बहुत कुछ इस स्कूल में सिखाया जाता है।
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कीनिया की राजधानी में यौन हिंसा और हमले को कम करने के लिए यह पहल शुरू की गई है। यहां एक सेल्फ डिफेंस टीम नियुक्त की गई है जो मुखर व्यायाम और शारीरिक गतिविधियों का उपयोग करके लड़कियों को हमला करना, उत्पीड़न, दुर्व्यवहार, होने पर लड़कों से मुंह तोड़ जवाब देना सिखाती है। 
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आपको बता दें 2014 में हिंसा के खिलाफ बच्चों और युवा महिलाओं के बारे में मालावी में छपी एक रिपोर्ट में यह था कि पांच में से एक लड़की और सात में से एक लड़के का यौन शोषण 18 वर्ष से पहले किया जाता है। मलावी में यौन शोषण को लेकर ये पहल यहां बहुत लोगों को उससे जोड़ रही है। किसी भी विद्यालय में बच्चों को पढने के साथ-साथ अगर इन सामाजिक बुराइयों से लड़ना सिखाया जाए तो उनका आगे का जीवन भी खुशहाल रहेगा और वो सिर उठाकर चलने में भी सक्षम रहेंगी।
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