भारत कितना असरदार
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में चीन, रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है। पिछले कुछ वर्षों में भारत का कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है। पिछले वर्ष उसे एससीओ में स्थायी सदस्य का दर्जा भी मिल गया। अमरीका, रूस, जर्मनी, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान समेत अधिकांश विकसित देश भारत को वैश्विक मंच पर अहमियत देने लगे हैं। अमरीका को अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का साथ चाहिए। इस बात को ध्यान में रखते हुए अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और अब डोनाल्ड ट्रंप भारत को अहम साझीदार घोषित कर चुके हैं। दूसरी तरफ रूस नहीं चाहता कि उसका पुराना दोस्त भारत अमरीकी खेमे में चले जाए। इसलिए पुतिन हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि भारत के साथ रूस का संबंध पहले की स्थिति में पहुंचे। यही कारण है कि अब चीन एससीओ भारत को अहमियत देने लगा है। चीन इस बात को भी समझता है कि भारत भले ही उसके साथ प्रतिस्पर्धा सीधे तौर पर नहीं कर सकता लेकिन उसमें प्रतिस्पर्घा करने की सभी संभावनाएं मौजूद हैं। फिर चीन को बादशाहत बनाए रखने के लिए भारत का विशाल उपभोक्ता बाजार की भी जरूरत है। इसलिए उसने पाक का साथ देते हुए भी भारत को तवज्जो दी है। साथ ही पीएम मोदी के साथ जिनपिंग प्रशासन तालमेल बैठाने पर जोर दे रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में चीन, रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है। पिछले कुछ वर्षों में भारत का कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है। पिछले वर्ष उसे एससीओ में स्थायी सदस्य का दर्जा भी मिल गया। अमरीका, रूस, जर्मनी, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान समेत अधिकांश विकसित देश भारत को वैश्विक मंच पर अहमियत देने लगे हैं। अमरीका को अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का साथ चाहिए। इस बात को ध्यान में रखते हुए अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और अब डोनाल्ड ट्रंप भारत को अहम साझीदार घोषित कर चुके हैं। दूसरी तरफ रूस नहीं चाहता कि उसका पुराना दोस्त भारत अमरीकी खेमे में चले जाए। इसलिए पुतिन हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि भारत के साथ रूस का संबंध पहले की स्थिति में पहुंचे। यही कारण है कि अब चीन एससीओ भारत को अहमियत देने लगा है। चीन इस बात को भी समझता है कि भारत भले ही उसके साथ प्रतिस्पर्धा सीधे तौर पर नहीं कर सकता लेकिन उसमें प्रतिस्पर्घा करने की सभी संभावनाएं मौजूद हैं। फिर चीन को बादशाहत बनाए रखने के लिए भारत का विशाल उपभोक्ता बाजार की भी जरूरत है। इसलिए उसने पाक का साथ देते हुए भी भारत को तवज्जो दी है। साथ ही पीएम मोदी के साथ जिनपिंग प्रशासन तालमेल बैठाने पर जोर दे रहा है।
जिनपिंग को दिया भारत आने का न्यौता
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार स्वर्ण सिंह का कहना है कि भारतीय हितों की जो चुनौतियां हैं, चाहे वो आतंकवाद हों, ऊर्जा की आपूर्ति या प्रवासियों का मुद्दा हो। ये मुद्दे भारत और एससीओ दोनों के लिए अहम हैं और इन चुनौतियों के समाधान की कोशिश हो रही है। ऐसे में भारत के जुड़ने से एससीओ और भारत दोनों को परस्पर फायदा होगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए शनिवार को चिंगदाओ शहर में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की औपचारिक मुलाकात भी हुई। इस मुलाकात के दौरान मोदी ने जिनपिंग को भारत आने का न्यौता दिया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार स्वर्ण सिंह का कहना है कि भारतीय हितों की जो चुनौतियां हैं, चाहे वो आतंकवाद हों, ऊर्जा की आपूर्ति या प्रवासियों का मुद्दा हो। ये मुद्दे भारत और एससीओ दोनों के लिए अहम हैं और इन चुनौतियों के समाधान की कोशिश हो रही है। ऐसे में भारत के जुड़ने से एससीओ और भारत दोनों को परस्पर फायदा होगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए शनिवार को चिंगदाओ शहर में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की औपचारिक मुलाकात भी हुई। इस मुलाकात के दौरान मोदी ने जिनपिंग को भारत आने का न्यौता दिया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है।