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रूस: राष्ट्रपति पुतिन के संवैधानिक सुधारों को मिली ड्यूमा की मंजूरी, विरोध में नहीं पड़े एक भी वोट

पुतिन के संवैधानिक सुधारों ( constitutional reform ) को लेकर 450 में से 432 सांसदों ने अपना समर्थन दिया
प्रस्ताव पर संशोधन का सुझाव देने के लिए सांसदों के पास 15 दिन का समय है

Jan 24, 2020 / 08:55 pm

Anil Kumar

Russian Parliament Duma (Symbolic Image)

मॉस्को। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ( Russian President Vladimir Putin ) के संवैधानिक सुधारों ( constitutional reform ) को लेकर कई दिनों से लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है। पुतिन को संसद से एक बड़ी राहत मिली है।

दरअसल, पुतिन के संवैधानिक सुधारों के प्रस्ताव को संसद के निचले सदन ड्यूमा ने मंजूरी दे दी है। निचले सदन यानी ड्यूमा ( Duma ) में गुरुवार को इसको लेकर मतदान हुए, जिसमें 450 में से 432 सांसदों ने इनका समर्थन किया। अब उच्च सदन की मंजूरी से पहले प्रस्ताव पर संशोधन का सुझाव देने के लिए सांसदों के पास 15 दिन का समय है।

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आपको बता दें कि बीते दिनों पुतिन के संवैधानिक सुधारों को लेकर प्रधानमंत्री दमित्री मेदवेदेव ( Prime Minister Dmitry Medvedev ) और उनकी पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद से रूस में सियासी बवंडर मच गया था।

संविधान में बदलाव के प्रस्तावों पर देश में जनमत संग्रह ( referendum ) कराया जाएगा। संविधान में बदलाव होने के बाद सत्ता की चाबी राष्ट्रपति के बजाय संसद के पास होगी।

दो घंटे में ही पास हो गया प्रस्ताव

सत्तारूढ़ यूनाइटेड रशिया पार्टी के सर्गेई नेवरोव ने शुक्रवार को बताया कि हमने सभी सांसदों से आह्वान किया था कि वे हमारे राष्ट्रीय नेता पुतिन द्वारा प्रस्तावित संविधान के महत्वपूर्ण परिवर्तनों का समर्थन करें। सभी सांसदों ने ऐसा किया और वह भी सिर्फ दो घंटे में। मतदान के दौरान विरोध में कोई वोट नहीं पड़ा।

ड्यूमा में यूनाइटेड रशिया पार्टी और अति राष्ट्रवादी सोशल डेमोक्रेट्स का ही प्रतिनिधित्व है। एक दशक से अधिक समय से रूस की संसद में किसी उदार या कट्टरपंथी पार्टी का प्रतिनिधित्व नहीं है।

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सदन में संविधान संशोधन प्रस्ताव रखते समय सामाजिक नीतियों को बताने पर जोर दिया गया। इनमें न्यूनतम मजदूरी और न्यूनतम पेंशन जैसी योजनाएं शामिल थीं। कई नेताओं और विश्लेषकों का कहना है कि जब तक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री पद के किसी उम्मीदवार का प्रस्ताव नहीं करते तब तक ड्यूमा क्रेमलिन (राष्ट्रपति भवन) पर निर्भर रहेगी। आलोचकों ने संवैधानिक सुधारों में पारदर्शिता का अभाव बताया है।

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