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मूवी रिव्यू

Movie Review PINK: कटघरे में समाज और सिस्टम…एक-एक सीन रोंगटे खड़े कर देते हैं…

स्टारकास्ट : अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, पीयूष मिश्रा, कीर्ति कुलहाड़ी, एंड्रिया तरंग, अंगद बेदी, रेटिंग :  4/5 

Sep 15, 2016 / 05:30 pm

dilip chaturvedi

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बैनर : ए राइसिंग सन फिल्म्स, रश्मि शर्मा फिल्म्स
निर्माता : रश्मि शर्मा, रूनी लहरी, शूजित सरकार
निर्देशक : अनिरुद्ध रॉय चौधरी
जोनर : थ्रिलर, ड्रामा
संगीतकार : शांतनु मोइत्रा, फैजा मुजाहिद, अनुपम रॉय

रोहित के. तिवारी/ मुंबई ब्यूरो। साउथ फिल्मों में अपना हुनर दिखाकर लोगों की वाहवाही लूटने में काफी हद तक सफल रह चुके निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने पहली बार बॉलीवुड इंडस्ट्री की फिल्म के निर्देशन की कमान संभाली है। उन्होंने लड़कियों की जिंदगी पर आधारित एक मुद्दे को अपने निर्देशन के जरिए बड़े पर्दे पर उकेरने का प्रयास किया है और अपने पहले ही प्रयास में वो सफल रहे…इस फिल्म का एक-एक सीन रोंगटे खड़े कर देता है…तन-मन को झकझोर देता है…निश्चित तौर यह एक असरदार सिनेमा है, जो समाज और सिस्टम की पोल खोलता है। इसके लिए फिल्म के निर्देशक तारीफ के काबिल तो हैं ही, साथ लेखक को भी दाद देनी होगी…कलाकारों ने तो जीवंत अभिनय किया है…। आइए, फिल्म की कहानी के साथ दूसरे पहलुओं पर नजर डालते हैं…


कहानी… 
कहानी एक घटना से शुरू होती है, जहां मिस मीनल अरोड़ा (तापसी पन्नू) अपनी दो फ्रेंड्स फलक (कीर्ति कुलहाड़ी) व एंड्रिया (एंड्रिया तरंग) के साथ बहुत ही डरी और सहमी हुई अपने घर सूरज कुंड पहुंचती है, जिन पर एडवोकेट दीपक सावंत (अमिताभ बच्चन) की नजर उन पर पड़ जाती है। दूसरी तरफ साउथ दिल्ली के दबंग और ओहदे वाले रंजीत सिंह के भतीजे राजवीर सिंह (अंगद बेदी) को उसके दोस्त अंकित मल्होत्रा और रौनक आनंद उसे खून से लथपथ अवस्था में अस्पताल ले जाते हैं, जहां डॉक्टर बताते हैं कि यदि जरा सा भी इधर-उधर हो जाता, तो राजवीर की आंख भी जा सकती थी। इधर, डरी-सहमी तीनों लड़कियां एक-दूसरे को ढांढस बंधाती हुई दिखाई देती हैं कि तभी राजवीर के दोस्त डम्पी (राशुल टंडन) का फोन उन लड़कियों के मकान मालिक के पास जाता है और कहता है कि वह लड़कियों से अपना फ्लैट खाली करवा ले। इधर, राजवीर के दोस्त एंड्रिया को परेशान करते हैं और फलक की गंदी तस्वीर को वायरल कर देते हैं, जिससे उसकी जॉब भी चली जाती है। साथ ही अरोड़ा को अचानक उसके दोस्त किडनैप कर लेते हैं और उसके साथ रेप करते हैं और धमकी देते हैं कि वह यह बात किसी से भी न बताए। 

अब तीनों लड़कियां परेशान होती हैं और उनसे कम्प्रोमाइज करने का प्रयास करती हैं, इसके लिए विश्वा (तुषार पांडेय) राजवीर से मिलता है, लेकिन बात नहीं बनती। अब मीनल अरोड़ा पुलिस में शिकायत करने की ठान लेती है, राजवीर के चाचा रंजीत की वजह से उसकी वहां भी नहीं सुनी जाती। फिर दीपक सावंत के कहने पर पुलिस कम्प्लेंट होती है और अचानक फरीदाबाद थाने की पुलिस सूरज कुंड जाकर मीनल को घर से उठा लाती है। अब मीनल और उसके घर वालों को यह भी समझ नहीं आता कि जब शिकायत उसने दर्ज कराई थी, तो भला उसे ही पुलिस ने गिरफ्तार क्यों कर लिया। बहरहाल, दीपक सावंत की मदद से उसे जमानत तो मिल जाती है, लेकिन केस लडऩे की लड़ाई जारी रहती है। इसी के साथ कहानी में ट्विस्ट आता है फिल्म तरह-तरह के मोड़ लेते हुए आगे बढ़ती है। इंटरवेल के बाद ज्यादातर कोर्ट ड्रामा है, जो दर्शकों को पलक झपकने नहीं देता।


अभिनय…
इंडस्ट्री के अपने अभिनय का लोहा मनाने में सफल रहे सदी के महानायक अमिताभ बच्चन अपने किरदार दीपक पर पूरा कंसन्ट्रेट करते दिखाई दिए। उन्होंने एक वकील की भूमिका को जीवंत करने के लिए हर तरह के प्रयास किए, जिसमें वो असर छोड़ते हैं। साथ ही तापसी पन्नू ने भी अपने रोल को बखूबी निभाया है। उन्होंने अपने अभिनय से साबित कर दिखाया है कि किरदार में दम होना बहुत जरूरी है। पीयूष मिश्रा ने अपने किरदार को शत-प्रतिशत दिया है और वे एक वकील के तौर पर अभियुक्त की तरफदारी करते अपने ही अंदाज में दिखाई दिए। अंगद बेदी ने अभिनय में इतने जमे कि दर्शक उनसे वाकई नफरत करने लगते हैं। निगेटिव किरदार निभाने वाला एक्टर यही चाहता है कि उसके किरदार से दर्शक नफरत करें, क्योंकि इसी में उसकी सफलता मानी जाती है। कीर्ति कुलहाड़ी और एंड्रिया तरंग ने भी अच्छा अभिनय पेश किया।

निर्देशन…
बॉलीवुड के नवनिर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने पहली ही बार में अपने निर्देशन में थ्रिलर और इमोशन का जोरदार तड़का लगाया है। फिल्म के केंद्र में महिलाएं हैं, लेकिन इसकी आड़ में उन्होंने एक तरह से समाज और सिस्टम की पोल खोली है। इसमें जरा भी संशय नहीं कि उन्होंने थ्रिलर और इमोशनल से भरपूर इस फिल्म में कुछ अलग दिखाने में बाजी मारी है। हैं। वो दर्शकों की वाहवाही के असली हकदार हैं।


कमजोर पहलू…
फिल्म में कुछ खामियां हैं, लेकिन उनसे फिल्म कमजोर नहीं होता, क्योंकि फिल्म की अच्छाइयां उसे ढक देती हैं।

मजबूत पहलू…
अनिरुद्ध रॉय चौधरी का निर्देशन, रितेश शाह की स्क्रिप्ट, अभिक मुखोपाध्याय का कैमरा वर्क और बुधोदित्या बैनर्जी की एडिटिंग, कलाकारों का असरदार अभिनय…हर दृष्टिकोण से फिल्म असर छोड़ती है।

क्यों देखें… 
यह समाज और सिस्टम पर बेस्ड फिल्म है। देश में लड़कियों से जुड़े मुद्दे को समझने और सीखने के लिहाज से आप बेझिझक सिनेमाघरों की ओर रुख कर सकते हैं। अमिताभ बच्चन का अभिनय आपको निराश नहीं करेगा। फिल्म असरदार है और मैसेज छोड़ती है, इसलिए एक बार जरूर देखनी चाहिए।

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