बता दें कि साल 1998 में नासिक की एक स्पेशल कोर्ट ने दामू अव्हाड को दोषी ठहराते हुए एक साल कैद की सजा सुनाई थी। दामू अव्हाड ने इसी साल बॉम्बे हाईकोर्ट में एक अपील दायर कर दी। न्यायमूर्ति वी जी वशिष्ठ की एकल पीठ ने गुरुवार को कहा कि केवल आरोपी से पैसे की बरामदगी के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता और अभियोजन दामू अव्हाड के खिलाफ मामले को साबित नहीं कर पाए।
1988 में पुलिसकर्मी के खिलाफ दर्ज हुआ था मामला शुक्रवार को कोर्ट ने नासिक के येओला तालुका पुलिस थाने में तैनात तत्कालीन उप निरीक्षक दामू अव्हाड को बरी कर दिया। अभियोजन के मुताबिक, दामू अव्हाड ने मार्च 1988 में एक व्यक्ति से कथित तौर पर 350 रुपए की रिश्वत मांगी थी। भाई को जमानत दिलाने में मदद के नाम पर व्यक्ति ने पुलिसकर्मी को रकम दिया था।
आखिर में हाईकोर्ट से हेड कॉन्स्टेबल को रिहाई तो मिली लेकिन दुर्भाग्य की बात यह थी कि कोर्ट का यह फैसला तब आया, जब हेड कॉन्स्टेबल की मौत हो चुकी थी। बता दें कि ये केस हेड कॉन्स्टेबल की पत्नी और बेटी ने लड़ा था। सबूतों की कमी को मद्दे नजर रखते हुए, आरोपी को संदेह का लाभ मिलता है और वह बरी होने का हकदार है।