बेटियों ने मन-मोह लिया
वर्ष 2003 में तेजास्थली में कोच बनकर आईं शिला दत्ता ने बताया कि यहां की बेटियों ने मन मोह लिया है। जब वह पहली बार यहां पहुंची तो ग्रामीण परिवेश की लड़कियां जिम्नास्टिक को जन्माष्टमी बोलती थी। पर इनकी मासुमियत व अपनेपन में गजब का आकर्षण है। साथ ही मेरे साथ पूरे मनोयोग से सुबह-शाम अभ्यास भी करती हैं। इन छात्राओं के साथ-साथ शीला अपनी तथा संस्थान की पहचान अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बनाना चाहती हैं।
संस्थान की छात्राओं ने अब तक राज्य स्तर पर करीब 400 तथा राष्ट्रीय स्तर पर 200 मैडल विभिन्न प्रतियोगिताओं में जीते हैं, जिनमें से राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिताओं में 10 स्वर्ण पदक, 15 रजत पदक तथा 34 कांस्य पदक पदक शामिल हैं। राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में तो इनकी कोई सानी नहीं है। राज्य स्तर पर करीब एक हजार से अधिक स्वर्ण, कांस्य तथा रजत पदक तेजास्थली संस्थान की खिलाड़ी छात्राओं ने जीते हैं। वहीं प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली छात्राओं की संख्या तो एक हजार से भी अधिक है।
शीला को जिम्नास्टिक के क्षेत्र में सरकारी मदद नहीं मिलने को लेकर शिकायत भी है। यदि बालिकाओं को इनडोर स्टेडियम तथा अन्य उपकरण व सरकारी सहायता मिले तो राजस्थान की बेटियां भी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकती हैं।
तेजास्थली में छात्राएं छोटी कक्षाओं में अध्ययन के साथ-साथ जिम्नास्टिक प्रशिक्षण नियमित रूप से प्राप्त करती हैं। कोच के अनुसार वर्ष 2013 में स्कूल इंटरनेशनल एशियार्ड चैम्पियनशिप में संस्थान की छात्रा प्रियंका कड़वासरा का पूना में हुए ट्रायल कैंप में चयन हुआ था। पांच छात्राओं की टीम में कड़वासरा का चौथा स्थान था। ब्राजील में हुए खेलों में केवल छात्रों की टीम ही भेजी गई, लेकिन छात्राओं की टीम को नहीं भेजा गया। जिसके चलते अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी छात्रा नहीं खेल सकी।
कोच शीला दत्ता के मार्गदर्शन में भले ही सैकड़ों छात्राओं ने पदक जीते हो। साथ ही उन्हें सम्मान भी मिला हो पर इन खिलाडिय़ों के द्रोणाचार्य को कभी जिला स्तर का सम्मान भी नहीं दिया गया, जबकि जिला स्तरीय कई समारोहों में इन छात्राओं के करतब शुरू होते हैं तो तालियों की गडगड़़ाहट थमती नहीं है।