मांड गायकी के तहत हजारीलाल को गत एक जनवरी को ही दिल्ली में भारत गौरव अवार्ड फाउण्डेशन नई दिल्ली द्वारा भारत गौरव पुरस्कार दिया गया। वेस्ट जोन कल्चर सेंटर उदयपुर की ओर से 3 नवम्बर 2020 को पद्मश्री अल्ला जिल्हा बाई मांड गायकी प्रशिक्षण संस्थान बीकानेर में प्रस्तुति देने पर सम्मानित किया गया। 14 अगस्त 2019 को जोधपुर के पूर्व नरेश गजेसिंह द्वारा हजारी लाल को वीर दुर्गादास अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसी प्रकार राजस्थानी लोक गीत गाने पर राजस्थान रत्नाकर दिल्ली की ओर से 51 हजार रुपए का पुरस्कार मिला था। हजारी लाल को वेस्ट जोन कल्चर सेंटर उदयपुर की ओर से गुरु शिष्य परपंरा के तहत चार बच्चों को मांड गायकी सिखाने के लिए चुना गया।
गेट को मारवाड़ी में मांडा बोलते हैं। शादी विवाह में दूल्हा जब दूल्हन के घर पहली बार आता है तो इस अवसर पर गाने वाले गीत को ही मांड कहा जाता है। वहीं कुछ अन्य इतिहासकार की माने तो महाराजा जसवंत सिंह, महाराजा विजय सिंह, अजीत सिंह व महराजा मानसिंह जैसे राजाओं ने मांड गायकों को काफी बढ़ावा दिया। महल में दर्जनों संगीतयज्ञी भी गाया करती थी, जिन्हें गायक या गायणी कहते थे। जैसलमेर इलाके को मांड कहा जाता है। ऐसे में वहां के नाम से भी इस शैली को जोड़ा जाता है। मांड गायकी की संस्कृति रजवाड़ों के समय में काफी लोकप्रिय थी। आज भी राजस्थान के शाही परिवारों में होने वाले उत्सवों, शादियों आदि में मांड गायकी ही होती ही है, जिसमें ऐतिहासिक गाथाओं को गायक बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत करता है।