एक का भी पूरा नहीं सूत्रों की मानें तो तकरीबन सात साल के दौरान एक भी मामले में पीडि़त पक्ष ने फैसले के बाद का बकाया भुगतान नहीं उठाया। एक बार तो इससे यही लगता है कि मामले अभी न्यायालय में विचाराधीन हैं। वैसे तो फैसला होने के बाद पीडि़त पक्ष को इसकी जानकारी संबंधित थाने को देनी होती है जो आगे की प्रक्रिया के लिए सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग को ब्योरा देकर यह दिलवाने का काम करता है। अभी तक बलात्कार का एक भी मामला ऐसा नहीं है तो फैसले के बाद भुगतान लेने यहां तक आया हो। दलित बालिका/महिला से बलात्कार करने वाला ओबीसी/सवर्ण जाति का हो तभी पांच लाख और सामूहिक बलात्कार में सवा आठ लाख तक के मुआवजा दिया जाता है। पड़ताल तो इस बात की होनी जरूरी है कि बाकी मुआवजा लेने वाला क्या एक भी फैसला नहीं हुआ या फिर जागरूकता की कमी से कोई यह लेने ही नहीं पहुंचा।
डीएनए की देरी पर एफआईआर पर पहली किस्त सूत्र बताते हैं कि पहले एफएसएल की डीएनए रिपोर्ट के बाद पीडि़ता को पहली किस्त देने का नियम बनाया गया था। डीएनए रिपोर्ट मिलने में होती देरी के चलते एफआईआर पर मुआवजे की पहली किस्त देना तय कर दिया गया। इसके बाद यही होने लगा। दलित बालिका/युवती/बलात्कार की एफआईआर पर उन्हें पहली किस्त दी जाने लगी। आंकड़ो के मुताबिक 1565 में से 1258 पीडि़ताओं को एफआईआर दर्ज करने पर पहली और 505 को चालान पेश होने पर दूसरी किस्त मिल चुकी है।
झूठे या फिर समझौते दलित बलात्कार के करीब चालीस फीसदी मामले सच से परे होते हैं। करीब आधे मामले रजामंदी से सुलझ जाते हैं। राहत राशि झूठे पीडि़तों अथवा समझौता करने वालों को करीब आधी तो मिल जाती है, जिसे वापस भी नहीं देना पड़ता। सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग के आंकड़ों में 499 मामले इसी पर खत्म हो गए। एक जनवरी 2017 से 23 नवंबर 2021 तक कुल 1565 मामले दर्ज हुए।
इनका कहना है करीब चालीस फीसदी मामले झूठे या फिर उनमें एफआर लग चुकी है। अब किसी मामले में फैसले की जानकारी तो हमें नहीं मिल पाई है, क्योंकि मुआवजे की बकाया राशि लेने अभी तक एक पीडि़ता यहां नहीं पहुंची है। संबंधित थाने के समक्ष फैसले की जानकारी के बाद बाकी मुआवजा देने का सिस्टम है।
-रामदयाल मांजू, सहायक निदेशक सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग नागौर००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० कई मामलों में दोष साबित नहीं हो पाने से आरोपी बरी हो जाते हैं। कई में रजामंदी कर लेते हैं। कुछ लोग शायद फैसले के बाद इसे लेने की जानकारी से अनभिज्ञ हो। एक भी मामला ऐसा नहीं पहुंचा, आश्चर्यजनक है।
-सतपाल सिंवर, एडवोकेट नागौर