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नागौर

मिर्धा कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्षों की राजनीतिक असफलता पर सांसद हनुमान बेनीवाल का बड़ा बयान

MP Beniwal’s big statement on political failure of students union president, छात्रसंघ चुनाव : रालोपा के राष्ट्रीय संयोजक हनुमान बेनीवाल ने कहा – कोर कमेटी तय करेगी छात्रसंघ चुनाव लड़ें या नहीं

नागौरAug 19, 2019 / 04:41 pm

shyam choudhary

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नागौर. छात्रसंघ चुनावों को राजनीति की पहली सीढ़ी माना जाता है। इसी सोच को लेकर महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव Student union election की शुरुआत की गई। उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्र हितों एवं विकास के मुद्दों को लेकर छात्रों का नेतृत्व करने वाले छात्र नेता राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाए और विधानसभा व लोकसभा की दहलीज तक पहुंचे, ताकि उच्च शिक्षित राजनेता तैयार हो सके, लेकिन नागौर के जिला मुख्यालय स्थित श्री बीआर मिर्धा कॉलेज से छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जीतने वाले छात्र नेताओं को राजनीति ज्यादा रास नहीं आई। एक भी छात्रसंघ अध्यक्ष ऐसा नहीं हुआ, जो विधायक या सांसद बना। इधर, छात्र राजनीति से तीन बार विधायक बनने के बाद सांसद बने हनुमान बेनीवाल MP Beniwal ने नागौर की बीआर मिर्धा कॉलेज से चुने गए छात्रसंघ अध्यक्षों की राजनीतिक असफलता को लेकर कहा कि उन्हें राजनीतिक पार्टियों ने प्लेटफार्म उपलब्ध नहीं करवाया, जिसके चलते वे आगे नहीं बढ़ सके। बेनीवाल ने यह भी कहा कि राजनीति में लम्बा संघर्ष करना पड़ता है।
पिछले दो दशक में चुनाव जीतने वाले छात्रसंघ अध्यक्षों के राजनीतिक जीवन की पड़ताल में सामने आया कि कॉलेज शिक्षा पूरी करने के बाद दो-चार को छोड़ दें तो ज्यादातर पूर्व अध्यक्ष वर्तमान में शिक्षक, वकील, व्यवसायी, सरपंच सहित विद्यार्थी के तौर पर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
वर्ष 1993 में छात्रसंघ अध्यक्ष बने राजकुमार भाकर अकेले ऐसे हैं जो छात्रनेता से सरपंच व पंचायत समिति सदस्य बने हैं। इसके अलावा 2001 में अध्यक्ष बने लक्ष्मीनारायण मुण्डेल पार्षद व भाजयुमो के जिलाध्यक्ष हैं। 2015 में अध्यक्ष रहे सुरेश भाकर वर्तमान में एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष हैं। 2013 में छात्रसंघ अध्यक्ष बने राजेन्द्र डूकिया दो वर्ष पहले एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष चुने गए थे। इसके अलावा कॉलेज स्तर पर अध्यक्ष बनने के बाद कोई भी छात्रनेता उच्च पद तक नहीं पहुंच पाए। पिछले छह-सात वर्षों से मिर्धा कॉलेज से छात्रसंघ अध्यक्ष बनने वाले छात्र नेता राजनीति में कॅरियर बनाने की बजाए विवादों से ज्यादा नाता जोड़ रहे हैं। कई छात्रसंघ अध्यक्ष तो वर्ष भर मुकदमेबाजी में ही व्यस्त रहे।
प्रदेश में गहलोत, नागौर में बेनीवाल व चौधरी
ऐसा नहीं है कि प्रदेश में छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद कोई भी राजनीति में अच्छे पद पर नहीं पहुंच पाया हो। प्रदेश के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने अशोक गहालेत ने अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत छात्रसंघ चुनाव से ही की। प्रदेश में ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। नागौर जिले की बात करें तो वर्तमान नागौर सांसद व तीन बार खींवसर विधायक चुने गए हनुमान बेनीवाल राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हैं। इसी प्रकार नावां विधायक महेन्द्र चौधरी भी राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके हैं।
कोई वकील तो कोई बना शिक्षक
जिला मुख्यालय के बीआर मिर्धा राजकीय कॉलेज में वर्ष 1996 में छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए घनश्याम फिड़ौदा, 1999 में अध्यक्ष बने गोविंद कड़वा व 2002 में अध्यक्ष चुने गए निम्बाराम काला वर्तमान में एडवोकेट हैं। जबकि 1994 में अध्यक्ष बने भीकाराम काला अब पुलिस सेवा में हैं। 1997 में अध्यक्ष रहे नृत्यगोपाल मित्तल वर्तमान में व्यवसायी के साथ भारत विकास परिषद में विभिन्न पदों पर रहे हैं। वर्ष 1995 में अध्यक्ष बने पतराम विश्नोई व 1998 में अध्यक्ष बने रामधन पोटलिया व्याख्याता हैं तो 2010 में अध्यक्ष रहे गंगासिंह ईनाणियां शारीरिक शिक्षक, 2011 में अध्यक्ष रहे रणजीत धौलिया सरकारी स्कूल में लिपिक तथा 2014 में अध्यक्ष रहे महेन्द्र भाकल शिक्षक के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। वहीं 2004 में अध्यक्ष रहे रमेश खोजा, 2012 में अध्यक्ष बने दीनाराम डिडेल खुद का व्यवसाय कर रहे हैं, जबकि 2016 में अध्यक्ष बने मोहित चौधरी, 2017 में अध्यक्ष रहे सुरेंद्र दोतड़ व 2018 में अध्यक्ष बने हनुमान लोमरोड़ अपनी शिक्षा पूरी करने में जुटे हैं।

तीन बार लग चुकी है चुनाव पर रोक
पिछले 26 वर्षों में छात्रसंघ चुनाव ने कई उतार-चढ़ाव देखें हैं। तीन बार छात्रसंघ चुनाव पर रोक लग चुकी है तो वर्ष 2006 में लिंगदोह कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश कर चुनाव की आचार संहिता भी तैयार की थी। 1993 से 2018 तक 26 वर्षों में 7 साल तक छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगी रही। 1993 में चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई। उसके बाद चुनाव वर्ष 2000 व 2003 में रोक के चलते चुनाव नहीं हुए। इसके बाद वर्ष 2005 में रोक लगी तो पांच साल बाद वर्ष 2010 में वापस चुनाव हुए।
बड़ा प्लेटफॉर्म नहीं मिला
छात्रसंघ चुनावों को लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के बाद काफी नुकसान पहुंचा है। छात्रों के दूसरी बार चुनाव लडऩे पर रोक लगा दी, जिसके कारण छात्रों की चुनाव में रुचि खत्म हो गई। राजनीति में लम्बा संघर्ष करना पड़ता है। दूसरा बड़ा कारण नागौर कॉलेज से छात्रसंघ अध्यक्ष बने छात्रनेताओं को प्रदेश की दोनों राजनीतिक पार्टियों ने बड़े प्लेटफार्म पर मौका नहीं दिया, जिसे आगामी चुनावों में आरएलपी पूरा करेगी।
– हनुमान बेनीवाल, सांसद, नागौर

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