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नागौर

पाणी की पीर : यहां नाडी-तालाब पर लगते हैं ताले, चौकीदार देते हैं पहरा

बासनी के लोगों से सीखना चाहिए जल संरक्षण का प्रबंधन, ग्रामीणों की कमेटी की अनुमति बिना नहीं होती टेंकर की एंट्री, पूरे कस्बे के लोग पीते हैं नाडी-तालाब का पानी, नहर का पानी नहाने-धोने के आता है काम

नागौरMay 14, 2024 / 11:05 am

shyam choudhary

bashni sabri talab
नागौर. मारवाड़ में ‘पाणी की पीर’ जगजाहिर है, सरकार ने भले ही करोड़ों रुपए खर्च कर नहर से हिमालय का पानी पहुंचाया है, लेकिन मारवाड़ के लोग आज भी पेयजल के लिए परम्परागत जल स्रोतों से ही अपनी प्यास बुझाते हैं। इसलिए नाडी-तालाब की सुरक्षा, साफ-सफाई व संरक्षण पर भी उतना ही ध्यान देते हैं, जितना अपने घर के परिंडे का रखते हैं। नागौर से आठ किलोमीटर दूर बासनी कस्बे के लोग आज भी नाडी-तालाब का पानी पीते हैं। 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इस कस्बे को गत वर्ष सरकार ने नगर पालिका बना दिया और यहां नहर का पानी भी सप्लाई होता है, लेकिन यहां के लोग नहरी पानी को केवल नहाने-धोने व जानवरों को पिलाने में ही काम लेते हैं। करीब 50 हजार की आबादी वाले बासनी में दो तालाब हैं, जिनके चारों तरफ चार दीवारी है और अंदर प्रवेश करने के लिए दरवाजे लगे हैं, जिन पर अनाधिकृत प्रवेश के लिए ताले लगे रहते हैं और चौकीदार पहरा देते हैं।
bashni sabri news

बासनी के तालाब में जानवरों व टेंकर के प्रवेश को रोकने के लिए दरवाजे पर ताला लगा रहता है।

सरकार नहीं कमेटी करती है व्यवस्था

बासनी के मोहम्मद सद्दीक ने बताया कि कस्बे के साबरी तालाब व दो किलोमीटर दूर स्थित गोरधन सागर तालाब की चार दीवारी, साफ-सफाई, खुदाई, मरम्मत आदि का प्रबंधन यहां कि बासनी चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से संचालित ‘नागौरी कौमी फंड बासनी’ देखती है। बासनी के लोग मुम्बई सहित बाहर के शहरों में व्यवसाय करते हैं और यहां सामाजिक कार्यों के लिए दिल खोलकर चंदा देते हैं, जिससे बासनी चेरिटेबल ट्रस्ट कस्बे में पानी की व्यवस्था के साथ बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा, कब्रिस्तान, गांव के पारम्परिक जल स्रोतों की देखरेख करती है।
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बासनी के गोरधन सागर तालाब के चारों तरफ दीवार बनी है और गेट पर चौकीदार के लिए कमरा बना हुआ है। यहां कूपन दिखाने पर ही टेंकर भरने की अनुमति है।

टेंकर भरने के लिए कूपन व डायरी जरूरी
साबरी नाडी से केवल घड़े भरकर पानी ले जाया जा सकता है। सख्ती इस कदर है कि औरतें जब पानी भरती हैं तो मर्द वहां बैठ भी नहीं सकते। रात में भी तलाई क्षेत्र में बैठना मना है, जो इसका उल्लंघन करता है, उसके खिलाफ कमेटी सख्त एक्शन लेती है। जबकि गांव से दो किमी दूर गोरधन सागर तालाब से टेंकर भरकर घर ले जाने की व्यवस्था है, लेकिन इसके लिए बासनी चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से कूपन व डायरी व्यवस्था है। कूपन जारी करने वाले मोहम्मद आसिफ अली ने बताया कि एक बार कूपन लेने के बाद ढाई महीने बाद ही दुबारा कूपन दिया जाता है और डायरी में इंद्राज किया जाता है। कूपन और डायरी में एंट्री दिखाने पर ही तालाब से टेंकर भरने दिया जाता है। कूपन नि:शुल्क दिया जाता है।
मिनरल वाटर से अच्छा है तालाब का पानी

बासनी के लोग आज भी बारिश का पानी पीते हैं, इसके लिए गांव के लोग नाडी-तालाब को घर का परिंडा मानकर साफ-सफाई व सुरक्षा पर ध्यान देते हैं। इसके लिए हमने चौकीदार भी लगा रखे हैं। तालाब में जानवरों व अनाधिकृत व्यक्तियों का प्रवेश रोकने के लिए गेट लगा रखे हैं और उन पर ताले रखते हैं।
– मोहम्मद अनवर चौहान, समाजसेवी, बासनी
साफ-सफाई पर ध्यान दें तो तालाब का पानी अच्छा

मारवाड़ में शुरू से ही पानी की कमी रही, इसलिए लोग नाडी-तालाब का पानी पीते हैं, इसलिए उनकी आदत में आ गया। यदि नाडी-तालाब के कैचमेंट क्षेत्र की साफ-सफाई रखी जाए तो पीने में कोई दिक्कत नहीं है। इसके साथ नाडी-तालाब का पानी जमीन पर खुला रहने से सूर्य की किरणे सीधी पडऩे से किसी प्रकार के किटाणु भी नहीं पनपते हैं।
– डॉ. महेश पंवार, पीएमओ, वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ, नागौर

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