पीडि़त पक्ष को जब अहसास हुआ कि जांच अधिकारी मामले की दिशा बदल रहे हैं, तो उन्होंने गृहमंत्री के समक्ष पेश होकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया। गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया के निर्देश पर मंत्रालय के विशेषाधिकारी अनिल कुमार जैन ने नागौर एसपी के नाम गत एक फरवरी को आदेश जारी कर कुचेरा थाने में दर्ज दुष्कर्म के मामले की जांच सम्बन्धित वृत्त को छोड़कर दूसरे वृत्त के पुलिस उप अधीक्षक से करवाने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद कुचेरा थानाधिकारी ने आठ दिन बाद यानी 8 फरवरी 2018 को मामले को दहेज प्रताडऩा का बताकर न्यायालय में चालान पेश कर दिया और शेष आरोपितों को निकालते हुए केवल पीराराम पुत्र परसाराम जाट को ही आरोपित माना।
पुलिस की कार्यशैली पर अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट नागौर के समक्ष पीडि़ता द्वारा दिए गए 164 के बयान भी सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं। पीडि़ता ने 164 के बयान में कहीं भी दहेज प्रताडऩा का जिक्र नहीं किया है, जबकि दो पेज के बयानों में उसने दुष्कर्म की पूरी कहानी बयां की है, जो उसने एफआईआर में भी बताई थी।
दुष्कर्म के मामलों में भी पुलिस गंभीरता नहीं दिखाती। कुचेरा थाने के निम्बड़ी चांदावता में पीडि़ता के साथ हुए दुष्कर्म के मामले को थानाधिकारी ने दहेज प्रताडऩा का बना दिया, जबकि पीडि़ता ने अपनी रिपोर्ट में दहेज प्रताडऩा का जिक्र ही नहीं किया था। इतना बड़ा हेरफेर करने के बाद नागौर पुलिस ने गृह मंत्रालय के आदेशों को भी दरकिनार कर दिया। हम इस मामले को हाईकोर्ट लेकर जाएंगे।
– गोविन्द कड़वा, पीडि़ता के एडवोकेट
कुचेरा थाने में दर्ज दुष्कर्म के मामले की जानकारी नहीं है। अभी बाहर हूं, नागौर आने के बाद फाइल देखकर ही बता सकूंगा।
– परिस देशमुख, पुलिस अधीक्षक, नागौर